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गृहारम्भ-मास-फल

जो मनुष्य गृहारम्भ या गृहप्रवेश के समय वास्तु पूजा करता है, वह आरोग्य, पुत्र, धन और धान्य प्राप्त करके सुखी होता हैं । चैत्र मास में गृहारम्भ करने से रोग और शोक की प्राप्ति होती हैं । वैशाख मास में गृहारम्भ करने से धन-धान्य, पुत्र तथा आरोग्य की प्राप्ति होती हैं । ज्येष्ठ मास में…

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गृहारम्भ-तिथि-फल

ये तिथियाँ गृहारम्भ के लिये शुभ फल देने वाली हैं । द्वितीया तिथि शुभ फल देने वाली हैं । तृतीयाश तिथि शुभ फल देने वाली हैं । पंचमी तिथि शुभ फल देने वाली हैं । षष्ठी तिथि शुभ फल देने वाली हैं । सप्तमी तिथि शुभ फल देने वाली हैं । दशमी तिथि शुभ फल…

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गृहारम्भ- सूर्य- राशि- फल

जो मनुष्य गृहारम्भ या गृहप्रवेश के समय वास्तु पूजा करता है, वह आरोग्य, पुत्र, धन और धान्य प्राप्त करके सुखी होता है । मेष राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है । वृष राशि के सूर्य में गृहारम्भ करने से धन की वृद्धि होती है । मिथुन राशि के…

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गृह-आकार-परिवर्तन

घर के किसी अंश को आगे नहीं बढ़ाना चाहिये। यदि बढ़ाना हो तो सभी दिशाओं में समान रूप से बढ़ाना चाहिये। घर को पूर्व दिशा में बढ़ाने पर मित्रों से वैर होता है। दक्षिण दिशा में बढ़ाने पर मृत्यु का तथा शत्रु का भय होता है। पश्चिम दिशा में बढ़ाने पर धन का नाश होता…

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 नक्षत्रों की संज्ञा

मूल संज्ञक- ज्येष्ठा, आश्लेषा, रेवती, मूल, मघा, अश्विनी पंचक संज्ञक- धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्र, उत्तरमाद्र और रेवती ध्रुव संज्ञक- उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद व रोहिणी चर या चल संज्ञक -स्वाती, पुनर्वसु श्रवण, घनिष्ठा और शतभिषा मिश्र संज्ञक- विशाखा और कृतिका अघोमुख संज्ञक- मूल, आश्लेषा, विशाखा, कृतिका, पूर्वफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़, पूर्वाभाद्रपद, भरणी और मघा ऊर्ध्वं संज्ञक-आर्द्रा पुष्य, श्रवण,…

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ग्रहों की नैसर्गिक मैत्री

ग्रहमित्र ग्रहसम ग्रहशत्रु ग्रहसूर्यचंद्रमा,  मंगल,  बृहस्पतिबुधशुक्र, शनि,  राहु, केतुचंद्रमासूर्य,  बुधशनि,  शुक्र,  बृहस्पति,  मंगलराहु, केतुमंगलसूर्य,  चंद्रमा,  बृहस्पति,  केतुशुक्र, शनिबुध, राहुबुधसूर्य,  शुक्रमंगल,  बृहस्पति,  शनि,  राहु, केतुचंद्रमाबृहस्पतिसूर्य, चंद्रमा,  मंगलशनि,  राहु, केतुबुध,  शुक्रशुक्रबुध, शनि,  राहु, केतुबृहस्पति,  मंगलसूर्य, चंद्रमाशनिबुध, शुक्र,  राहु,बृहस्पतिसूर्य, चंद्रमा, मंगल, केतुराहुशुक्र, शनिबृहस्पति,  बुधसूर्य, मंगल, चंद्रमा, केतुकेतुमंगल, शुक्रबृहस्पति,  बुधशनि, राहु, सूर्य, चंद्रमा पंडित पवन कुमार शर्मा

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 ग्रह- रोग

सूर्य- उच्च रक्तचाप, तीव्रज्वर, पेट तथा नेत्र संबंधी रोग, पित्तज बीमारियां तथा हृदय रोग देता है। जब सूर्य पीड़ित होता है तथा जलीय राशियों में स्थित होता है तो क्षय रोग, पेचिश रोग देता है। चन्द्रमा- सांस की बीमारी, त्वचा की बीमारियां, अपच, मन्दाग्नि आदि बीमारियों का कारक ग्रह है। यह कफ तथा वायु का…

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 अष्टक-वर्ग

1. जन्म लग्न से ग्रहों की स्थिति अनुसार फल कहना । 2. जन्म-कालीन चन्द्रमा जिसको चन्द्रलग्न भी कहते हैं, उस स्थान से ग्रहों की स्थिति अनुसार फल कहना । 3. गोचर कुंडली के अनुसार फल कहना । लग्न से शरीर का विचार  और चन्द्रमा से मन का विचार किया जाता है। समस्त कार्य मन पर…

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