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भारतीय वर्षाविज्ञान

प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों के पास आज की तरह न तो विकसित वेधशालाएँ थीं और न सूक्ष्म परिणाम देने वाले आधुनिकतम वैज्ञानिक उपकरण, फिर भी वे अपने अनुभव तथा अतीन्द्रिय ज्ञान के सहारे आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों आदि का अध्ययन करके वर्षां पूर्व मौसम का पूर्वानुमान कर लेते थे । यद्यपि वैदिक संहिताओं, पुराणों, स्मृतियों में इस…

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ज्योतिष की उपयोगिता

मनुष्य के आज भी समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा ही चलते हैं । व्यवहार के लिये अत्यन्त उपयोगी दिन, सप्ताह, पक्ष, मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सव, तिथि आदि का परिज्ञान इसी शास्त्र से होता है । शिक्षित या सभ्य समाज की तो बात ही क्या, भारतीय अनपढ़ कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिचित…

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ज्योतिषशास्त्र और भगवान् सूर्य

गणित, होरा एवं संहिता - इन तीन स्कन्धों से युक्त ज्योतिष शास्त्र वेद का नेत्र प्रधान अंग है । इस विद्या से भूत, भविष्य, वर्तमान, सभी वस्तुओं तथा त्रिलोक का प्रत्यक्षवत् ज्ञान हो जाता है । ज्योतिष ज्ञान विहीन लोक अन्य ज्ञानों से पूर्ण होने पर भी दृष्टि शून्य अन्धेके तुल्य होता है । इस…

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होरा

मानव जीवन के सुख-दुःख सभी शुभाशुभ विषयों का विवेचन करने वाला विभाग होरा शास्त्र है । इसमें इष्टकाल के द्वारा विविध कुण्डलियों का निर्माण कर जातक के पूर्वजन्म, वर्तमान जन्म तथा भविष्य के फलों के कथन की विधियाँ निरूपित हैं । इस स्कन्ध में ग्रह और राशियों का स्वरूप वर्णन, ग्रहों की दृष्टि, उच्च-नीच, मित्रामित्र,…

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संहिता

संहिता में सिद्धान्त और फलित दोनों के विषयों का मिश्रण है । गणित एवं फलित के मिश्रित रूप को अथवा ज्योतिष शास्त्र के सभी पक्षों पर जिसमें विचार किया जाता है, उसे संहिता कहते हैं । इसमें नक्षत्र मण्डल में ग्रहों के गमन और उनके परस्पर युद्धादि, केतु-धूमकेतु, उल्कापात, उत्पात तथा शकुनादिकों के द्वारा राष्ट्र…

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सिद्धान्त

काल की लघुत्तम इकाई से प्रलयान्त काल तक की कालगणना की हो, कालमानों के सौर-सावन-नाक्षत्र चान्द्र आदि भेदों का निरुपण किया हो, ग्रहों की मार्गी-वक्री, शीघ्र-मन्द, नीच-उच्च, दक्षिण-उत्तर आदि गतियों का वर्णन  हो, अंक गणित-बीजगणित- दोनों गणितविद्याओं का विवेचन किया गया हो, उत्तर सहित प्रश्नों का विवेचन किया गया हो, पृथ्वी की स्थिति, स्वरूप एवं…

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काल

संसार के सभी दृश्य पदार्थ परिवर्तन शील हैं । इसी परिवर्तन के ज्ञान का जो हेतु है, उसी को काल कहते हैं । यह काल अद्वितीय, सर्वव्यापी तथा नित्य है । भूत, भविष्य एवं वर्तमान - ये काल के व्यावहारिक भेद हैं । काल एक ही है । काल के ही वशीभूत होकर ब्रह्मा सृष्टि…

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ज्योतिष

महर्षि पाणिनि ने ज्योतिष को वेदपुरुष का नेत्र कहा है - 'ज्योतिषामयनं चक्षुः'। जैसे मनुष्य बिना नेत्र के किसी भी वस्तु का दर्शन करने में असमर्थ होता है, ठीक वैसे ही वेदशास्त्र को जानने के लिये ज्योतिष का महत्त्व सिद्ध है । भूतल, अन्तरिक्ष एवं भूगर्भ के प्रत्येक पदार्थ का त्रैकालिक यथार्थ ज्ञान जिस शास्त्र…

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