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मनुष्य के आज भी समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा ही चलते हैं । व्यवहार के लिये अत्यन्त उपयोगी दिन, सप्ताह, पक्ष, मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सव, तिथि आदि का परिज्ञान इसी शास्त्र से होता है । शिक्षित या सभ्य समाज की तो बात ही क्या, भारतीय अनपढ़ कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिचित हैं, वे भली-भाँति जानते हैं कि किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है और बीज कब बोना चाहिये, जिससे कि फसल अच्छी हो । यदि कृषक ज्योतिष शास्त्र के उपयोगी तत्त्वों को न जानते तो उनका अधिकांश श्रम निष्फल हो जाता ।

ज्योतिष विज्ञान के बिना औषधियों का निर्माण यथा समय गुण युक्त नहीं किया जा सकता । कारण एकदम स्पष्ट है कि ग्रहों के तत्त्व और स्वभाव को ज्ञात कर उन्हीं के अनुसार उसी तत्त्व और स्वभाव वाली औषधि का निर्माण करने से वह विशेष गुणकारी हो जाती है । जो इन दोनों का ज्ञान रखते हैं, वे अद्भुत कार्य कर सकते हैं । जो भिषक् ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान से अपरिचित रहते हैं, वे सुन्दर और अपूर्व गुणकारी औषधि-निर्माण नहीं कर सकते ।

एक अन्य बात यह है कि इस शास्त्र के ज्ञान के द्वारा चिकित्सक रोगी के रोग का मूल कारण ज्ञातकर सफल हो सकता है । इस शास्त्र की सबसे बड़ी उपयोगिता यही है कि यह समस्त मानव जीवन के प्रत्यक्ष और परोक्ष रहस्यों का विवेचन करता है और प्रतीकों द्वारा समस्त जीवन को प्रत्यक्ष रूप में उस प्रकार प्रकट करता है, जिस प्रकार दीपक अन्धकार में रखी हुई वस्तु को दिखलाता है । मानव का कोई भी व्यावहारिक कार्य इस शास्त्र के ज्ञान के बिना नहीं चल सकता ।

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