सामुद्रिक शास्त्र भारत की बहुत प्राचीन विद्या है। सामुद्रिक शास्त्र का अध्ययन क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है, इसमें शरीर लक्षणों के साथ ही हस्त विज्ञान का भी अध्ययन होता है । हस्तविज्ञान का अपना कुछ वैशिष्ट्य है प्रातः काल में हथेलियों का दर्शन करना हमारे यहाँ पुण्यदायक, मंगलप्रद तथा तीर्थों के सेवन-जैसा माना गया है । अतः सुबह उठते ही हथेलियों को देखने की परम्परा है ।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती । करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम् ॥ समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते । विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥
मातृरेखा, पितृरेखा और आयुरेखा क्रमश: गंगा, यमुना और सरस्वती हैं । इसलिये हथेलियों के दर्शन से त्रिवेणी दर्शन हो जाता है । रेखाओं-अंगों को देखकर भूत, भविष्य, वर्तमान के सभी शुभाशुभ फल जाने जा सकते हैं । मणिबन्ध से अँगुष्ठ और तर्जनी के बीच जो रेखा गयी है, उसे पितृरेखा या गोत्र रेखा कहते हैं । अंगुष्ठ एवं तर्जनी के मध्य जाने वाली रेखा मातृ रेखा या धन रेखा है । तीसरी आयु रेखा को जीवित या तेज रेखा कहते हैं । तीनों रेखाएँ किसी के हाथ में सम्पूर्ण और निर्दोष हों तो वे गोत्र, धन एवं आयु की वृद्धि बताती हैं । पितृरेखा को ऊर्ध्व लोक, मातृरेखा को मृत्यु लोक आयु रेखा को पाताल लोक कहते हैं । पितृरेखा के ब्रह्मा, मातृ रेखा के स्वामी विष्णु आयु रेखा के स्वामी शिव हैं । इन्द्र, यम, वरुण कुबेर-हथेली के दिशाओं के स्वामी हैं । पितृरेखा बाल्यावस्था, मातृरेखा तरुणावस्था तथा आयुरेखा वृद्धावस्था बताती है ।