तिथिवारं च नक्षत्रं योगः करणमेव च । यत्रैतत्पञ्चकं स्पष्टं पञ्चाङ्गं तन्निगद्यते ॥
जानाति काले पञ्चाङ्गं तस्य पापं न विद्यते । तिथेस्तु श्रियमाप्नोति वारादायुष्यवर्धनम् ॥
नक्षत्राद्धरते पापं योगाद्रोगनिवारणम् । करणात्कार्यसिद्धिः स्यात्पञ्चाङ्गफलमुच्यते ॥
पञ्चाङ्गस्य फलं श्रुत्वा गङ्गास्नानफलं लभेत् ।
तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण- इन पाँचों का जिसमें स्पष्ट मानादि रहता है, उसे पंचांग कहते हैं । जो यथा समय पंचांग का ज्ञान रखता है, उसे पाप स्पर्श नहीं कर सकता । तिथि का श्रवण करने से श्री की प्राप्ति होती है, वार के श्रवण से आयु की वृद्धि होती है, नक्षत्र का श्रवण पाप को नष्ट करता है, योग के श्रवण से रोग का निवारण होता है और करण के श्रवण से कार्य की सिद्धि होती है । यह पंचांग श्रवण का फल कहा गया है। पंचांग के फल को सुनने से गंगास्नान का फल प्राप्त होता है ।