दस्त्रौ यमोऽनलो धाता चन्द्रो रुद्रोऽदितिर्गुरुः । पितरो भगोऽर्यमदिवाकरौभुजङ्गमश्च ॥ त्वष्टा वायुश्च शक्राग्नि मित्रः शुक्रश्च निर्ऋतिः । जलं विश्वे विधिर्विष्णुर्वासवो वरुणस्तथा ॥ अजैकपादहिर्बुध्न्यः पूषेति कथितो बुधेः । अष्टाविंशतिसंख्यानां नक्षत्राणामधीश्वराः ॥
अश्विनी के स्वामी अश्विनीकुमार, भरणी के यम, कृत्तिका के अग्नि, रोहिणी के ब्रह्मा, मृगशिरा के चन्द्रमा, आर्द्रा के शिव, पुनर्वसु के अदिति, पुष्य के वृहस्पति, आश्लेषा के सर्प, मघा के पितर, पूर्वाफाल्गुनी के स्वामी भगदेवता, उत्तराफाल्गुनी के अर्यमा, हस्त के सूर्य, चित्रा के विश्वकर्मा, स्वाती के वायु, विशाखा के इन्द्र और अग्नि, अनुराधा के सूर्य, ज्येष्ठ के इन्द्र, मूल के निॠति, पूर्वाषाढ़ा के जल, उत्तराषाढ़ा के विश्वेदेव, अभिजित् के विधि, श्रवण के विष्णु, धनिष्ठा के वसु, शतभिषा के वरुण, पूर्वाभाद्रपदा के अजचरण, उत्तराभाद्रपदा के अहिर्बुध्न्य, रेवती के पूषा, ये नक्षत्रों के स्वामी हैं ।