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ग्रहों की नैसर्गिक मैत्री

ग्रहमित्र ग्रहसम ग्रहशत्रु ग्रहसूर्यचंद्रमा,  मंगल,  बृहस्पतिबुधशुक्र, शनि,  राहु, केतुचंद्रमासूर्य,  बुधशनि,  शुक्र,  बृहस्पति,  मंगलराहु, केतुमंगलसूर्य,  चंद्रमा,  बृहस्पति,  केतुशुक्र, शनिबुध, राहुबुधसूर्य,  शुक्रमंगल,  बृहस्पति,  शनि,  राहु, केतुचंद्रमाबृहस्पतिसूर्य, चंद्रमा,  मंगलशनि,  राहु, केतुबुध,  शुक्रशुक्रबुध, शनि,  राहु, केतुबृहस्पति,  मंगलसूर्य, चंद्रमाशनिबुध, शुक्र,  राहु,बृहस्पतिसूर्य, चंद्रमा, मंगल, केतुराहुशुक्र, शनिबृहस्पति,  बुधसूर्य, मंगल, चंद्रमा, केतुकेतुमंगल, शुक्रबृहस्पति,  बुधशनि, राहु, सूर्य, चंद्रमा पंडित पवन कुमार शर्मा

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 ग्रह- रोग

सूर्य- उच्च रक्तचाप, तीव्रज्वर, पेट तथा नेत्र संबंधी रोग, पित्तज बीमारियां तथा हृदय रोग देता है। जब सूर्य पीड़ित होता है तथा जलीय राशियों में स्थित होता है तो क्षय रोग, पेचिश रोग देता है। चन्द्रमा- सांस की बीमारी, त्वचा की बीमारियां, अपच, मन्दाग्नि आदि बीमारियों का कारक ग्रह है। यह कफ तथा वायु का…

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राशि-स्वामी-ग्रह

1. मेष- वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल होता है।    मंगल मकर राशि में 28 अंश तक उच्च रहता है।    मंगल कर्क राशि में 28 अंश तक नीच रहता है। 2. वृष- तुला राशि का स्वामी शुक्र होता है।   शुक्र मीन राशि में 27 अंश तक उच्च रहता है।   शुक्र कन्या राशि में…

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ग्रह-बल

स्थानबल, दिग्बल, कालबल, नैसगिकबल, चेष्टाबल और दृग्बल ये छह प्रकार के बल हैं । 1. स्थानबल- जो ग्रह उच्च, स्वगृही, मित्रगृही, मूल-त्रिकोणस्थ, स्व-नवांशस्थ अथवा द्रेष्काणस्थ होता है, वह स्थानबली कहलाता है । चन्द्रमा शुक्र समराशि में और अन्य ग्रह विषम राशि में बली होते हैं । 2. दिग्बल- बुध और गुरु लग्न में रहने से,…

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ग्रह-फल-विचार

सूर्य से- पिता, आत्मा, प्रताप, आरोग्यता, आसक्ति और लक्ष्मी का विचार किया जाता है। चन्द्रमा से- मन, बुद्धि, राजा की प्रसन्नता, माता और धन का विचार किया जाता है। मंगल से- पराक्रम, रोग, गुण, भाई, भूमि, शत्रु और जाति का विचार किया जाता है।  बुध से- विद्या, बन्धु, विवेक, मामा, मित्र और वचन का विचार…

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ग्रह-कारक

सूर्य- पितृ, आत्मा, स्वभाव, आरोग्यता, राज्य, देवालय का कारक होता है। चन्द्र- चन्द्र  मन का कारक होता है। मंगल- शक्ति, बल, भूसम्पत्ति, कृषि, धैर्य, छोटा भाई, पराक्रम, सेनापति, राजशत्रु का कारक होता है। बुध- विद्या, बुद्धि, वक्तृत्व-शक्ति, स्वतन्त्र धन्या, वाणी, लेखन-कला, वेदान्त विषय में रुचि, ज्योतिष विद्या का ज्ञान, गणित-शास्त्र, सम्पादक,…

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राहु-केतु की उत्पति

 विष्णु पुराण के अनुसार एक समय देवताओं और दानवों में लंबे समय तक युद्ध चलता रहा। भगवान विष्णु ने दोनों पक्षों से समुद्र मंथन करने के लिए के लिए युद्ध रोकने का आग्रह किया। असुरराज बलि ने देवराज इन्द्र से समझौता कर लिया और समुद्र मंथन के लिये तैयार हो गये। समुद्र मंथन से जो…

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ग्रहों के दान

सूर्यचन्द्रमंगलबुधगुरुशुक्रशनिराहुकेतुमाणिक्यसफेद चावललाल चन्दनकांस्यपात्रपीला धान्यसफेद चंदननीलम, तिलसप्तधान्यकम्बल, कस्तूरीगेहूं, गुड़सफेद वस्त्रमसूरहरा वस्त्रपीला वस्त्र,सोनासफेद चावलउड़द, तेलउड़द, हेमनागउड़दसवत्सा गौसफेद चन्दनगेहूंघीघी, पीला फलसफेद वस्त्रकाला वस्त्रनीला वस्त्र, गोमेदकाला पुष्पकमल-फुलसफेद फुलगुड़, लाल चंदनमूंग, पन्नापीला तेलसफेद फुललोहाकाला फुलतिलतेललाल चन्दनचीनी, चांदीलाल वस्त्रसोनापुखराजचांदीकाली गायखड्ग, तिलरत्न, सोनालाल वस्त्रबैल, घीलाल फुलरत्नहल्दीदहीकाला फुलतेल, लोहालोहासोना, तांबाशंख, दहीसोना, तांबाकपूरपुस्तक, मधुसुगन्धित द्रव्यछाताकम्बलशस्त्रकेसर, मूंगामोती,कपूरकेसरफलनमक, चीनीचीनी, गौसोनासोना, रत्नसप्तधान्यदक्षिणादक्षिणादक्षिणादक्षिणादक्षिणादक्षिणादक्षिणादक्षिणादक्षिणाज.स. 7000 ज.स. 11000 ज.स.…

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