1. जन्म लग्न से ग्रहों की स्थिति अनुसार फल कहना ।
2. जन्म-कालीन चन्द्रमा जिसको चन्द्रलग्न भी कहते हैं, उस स्थान से ग्रहों की स्थिति अनुसार फल कहना ।
3. गोचर कुंडली के अनुसार फल कहना ।
लग्न से शरीर का विचार और चन्द्रमा से मन का विचार किया जाता है। समस्त कार्य मन पर ही निर्भर है। मन से ही सुख एवं दुःख का अनुभव होता है। मन की सबलता के अनुसार पारलौकिक एवं सांसारिक यात्रा में सफलता होती है। प्रत्येक मनुष्य के जन्म के बाद जन्मकालीन चन्द्रमा के स्थान से जिन-जिन राशि में ग्रह भ्रमण करते हुए जाते हैं वैसा फल उस समय में जातक के जीवन में होता है। इसी को गोचर फल कहते हैं। जन्म समय में जिस-जिस राशि में सात ग्रह स्थित हो और लग्न जिस राशि में स्थित हो, इन आठ स्थानों से (सात ग्रह और एक लग्न ) गोचर फल विचार किया जाता है। इसी फल विचार विधि को अष्टक-वर्ग विधि कहते हैं।