Skip to content Skip to footer

चान्द्रमासों के नाम नक्षत्रों के नाम पर रखे गये है। पूर्णिमा को जो नक्षत्र होता है,उस नक्षत्र के नाम पर मास का नाम रखा  गया है चन्द्रमा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को अश्विनी नक्षत्र पर प्रकट हुआ था पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र पर आया इस कारण प्रथम मास का नाम चैत्र पड़ा। अगले मास की पूर्णिम विशाखा नक्षत्र होने से उस मास का नाम वैशाख दिया गया। इसी प्रकार पूर्णिमा को ज्येष्ठा नक्षत्र होने से ज्येष्ठ, पूर्वाषाढ़ा से आषाढ़, श्रवण नक्षत्र से श्रावण, भाद्रपद से भाद्रपद, अश्विनी से आश्विन, , कृतिका से कार्तिक मृगशिरा से मार्गशीर्ष, पुष्य नक्षत्र से पौष, मघा से माघ पूर्वाफाल्गुनी से फाल्गुन नाम रखा गया।

  भारतीय संस्कृति में सूर्य एवं चन्द्र दोनों को समान महत्त्व दिया गया है। महीनों के रूप में जहाँ चान्द्रमास को प्रधानता दी गयी है, वहाँ वर्ष के रूप में सौरवर्ष को स्वीकारा गया है। सौरवर्ष 3651/4 दिन के लगभग तथा चान्द्रमास 354 दिन के लगभग होता है। यदि इन दोनों में एकरूपता नहीं लायी जाय तो हमारे त्योहार  कभी ग्रीष्मऋतु में तथा कभी शिशिर ऋतु में आयेंगे, ऐसा न हो, इसलिये निरयन सौरवर्ष एवं चान्द्रवर्ष के लगभग 11 दिन के अन्तर को मिटाने के लिये अधिकमास या मलमास की व्यवस्था की गयी है। 32 मास 16 दिन 4 घटी उपरान्त अधिकमास पुनः आता है।

en_USEN