शास्त्रोक्त नियम को ही ‘व्रत’ कहते हैं, वही ‘तप’ माना गया है । ‘दम’ (इन्द्रियसंयम) और ‘शम’ (मनोनिग्रह) विशेष नियम व्रत के ही अङ्ग हैं । व्रत करने वाले पुरुष को शारीरिक संताप सहन करना पड़ता है, इसलिये व्रत को ‘तप’ नाम दिया गया है । इसी प्रकार व्रत में इन्द्रिय समुदाय का संयम करना होता है, इसलिये उसे ‘नियम’ भी कहते हैं । व्रत-उपवास के पालन से प्रसन्न होकर देवता भोग तथा मोक्ष प्रदान करते हैं । पापों से निवृत्त होकर सब प्रकार के भोगों का त्याग करते हुए जो सद्गुणों के साथ वास करता है, उसी को ‘उपवास’ समझना चाहिये । क्षमा, सत्य, दया, दान, शौच, इन्द्रियसंयम, देवपूजा, अग्निहोत्र, संतोष तथा चोरी का अभाव – ये दस नियम सामान्यतः सम्पूर्ण व्रतों में आवश्यक माने गये हैं ।
सूर्य –
सूर्य का व्रत – 12 रविवारों तक करना चाहिये । व्रत के दिन लाल रंग का वस्त्र धारण करना चाहिये । शुद्ध जल, रक्त चन्दन, अक्षत, लाल पुष्प और दूर्वा से सूर्य को अर्घ्य दे । भोजन में गेहूँ की रोटी, दलिया, दूध, दही, और चीनी खाये । नमक नहीं खाये । इस व्रत के प्रभाव से सूर्य का अशुभ फल शुभ फल में परिणत हो जाता है । तेजस्विता बढ़ती है । शारीरिक रोग शान्त होते हैं । आरोग्यता प्राप्त होती है ।
चन्द्रमा –
चन्द्रमा का व्रत – 10 सोमवारों तक करना चाहिये । व्रत के दिन श्वेत वस्त्र धारण करना चाहिये । भोजन में बिना नमक के दही, दूध, चावल, चीनी और घी से बनी चीजें ही खाये । इस व्रत को करने से व्यापार में लाभ होता है । मानसिक कष्टों की शान्ति होती है । विशेष कार्य सिद्धि में यह व्रत पूर्ण लाभदायक होता है।
मंगल –
मंगल का व्रत – 21 मंगलवारों तक करना चाहिये । यह व्रत अधिक दिन भी किया जा सकता है । लाल वस्त्र धारण करना चाहिये । भोजन में गुड़ से बना हलवा या लड्डू इत्यादि खाये । नमक नहीं खाये । इस व्रत के करने से ऋण से छुटकारा मिलता है । संतान सुख प्राप्त होता है ।
बुध –
बुध का व्रत – 17 बुधवारों तक करना चाहिये । हरे रंग का वस्त्र धारण करना चाहिये । भोजन में नमक रहित मूँग से बनी चीजें खानी चाहिये जैसे मूँग का हलवा, मूँग की पंजीरी, मूँग के लड्डू इत्यादि । भोजन से पहले तीन तुलसी के पत्ते चरणामृत या गंगाजल के साथ खाकर तब भोजन करे । इस व्रत के करने से विद्या और धन का लाभ होता है । व्यापार में उन्नति होती है और शरीर स्वस्थ रहता है।
बृहस्पति –
बृहस्पति का व्रत – 16 बृहस्पति वारों तक करना चाहिये। पीले रंग के वस्त्र धारण करना चाहिये । भोजन में चने के बेसन, घी और चीनी से बनी मिठाई लड्डू ही खाये । यह व्रत विद्यार्थियों के लिये बुद्धि और विद्याप्रद है । इस व्रत से धन की स्थिरता और यश की वृद्धि होती है । अविवाहितों को यह व्रत विवाह में सहायक होता है ।
शुक्र –
शुक्र का व्रत – 21 शुक्रवारों तक करना चाहिये । श्वेत वस्त्र धारण करना चाहिये । भोजन में चावल, चीनी, दूध, और घी से बने पदार्थ का भोजन करे । इसे करने से सुख-सौभाग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।
शनिश्चर –
शनिश्चर का व्रत – 19 शनिवारों तक करना चाहिये । काला वस्त्र धारण करना चाहिये । एक पात्र में शुद्ध जल, काला तिल, दूध, चीनी और गंगाजल लेकर इसको पीपल वृक्ष की जड़ में पश्चिम मुख होकर चढ़ा दे । भोजन में उड़द (कलाई) आटे से बनी चीजें पंजीरी, पकौड़ी, चीला बड़ा इत्यादि खाये । कुछ तेल में बनी चीजें अवश्य खाये । केला खाये । इस व्रत के करने से सब प्रकार की सांसारिक झंझटें दूर झगड़े में विजय प्राप्त होती है ।लोहे, मशीनरी, कारखाने वालों के लिये उन्नति और लाभदायक होता है ।
राहु और केतु –
राहु और केतु का व्रत – 18 शनिवारों तक करना चाहिये । काले रंग का वस्त्र धारण करना चाहिये । पात्र में जल, दूर्वा और कुशा अपने पास रख ले । जप के बाद इनको पीपल की जड़ में चढ़ा दे । भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी, और काले तिल से बने पदार्थ खाये । रात में घी का दीपक पीपल वृक्ष की जड़ में रख दिया करे । इस व्रत के करने से शत्रु का भय दूर होता है, राजपक्ष से विजय मिलती है, सम्मान बढ़ता है ।