सूर्य
पद्मासनः पद्मकर: पद्मागर्भसमद्युतिः । सप्ताश्वः सप्तरज्जुश्च द्विभुज: स्यात् सदा रविः ॥
सूर्य ग्रहों के राजा हैं। यह कश्यप गोत्र के क्षत्रिय एवं कलिंग देश के स्वामी हैं। जपाकुसुम के समान इनका रक्तवर्ण है। दोनों हाथों में कमल लिये हुए हैं, सिन्दूर के समान वस्त्र, आभूषण और माला धारण किये हुए हैं।ये जगमगाते हुए हीरे के समान, चन्द्रमा को प्रकाशित करने वाले तेज तथा त्रिलोकी का अन्धकार दूर करने वाले प्रकाश से सम्पन्न हैं। सात घोड़ों के एक चक्र रथ पर आरूढ़ होकर सुमेरु की प्रदक्षिणा करते हुए प्रकाश के समुद्र भगवान् सूर्य हैं इनके अधिदेवता शिव हैं और प्रत्याधि देवता अग्नि हैं।
चन्द्रमा
श्वेतः श्वेताम्बरधरः श्वेताश्वः श्वेतवाहनः । गदापाणिर्द्विबाहुश्च कर्तव्यो वरदः शशी ॥
भगवान् चन्द्रमा अत्रिगोत्रीय हैं। यामुन देश के स्वामी हैं। इनका शरीर अमृतमय हैं। दो हाथ हैं- एक में वरमुद्रा, दूसरे में गदा हैं। दूध के समान श्वेत शरीर पर श्वेत वरमुद्रा, वस्त्र, माला और अनुलेपन धारण किये हुए हैं। मोती का हार हैं। अपनी सुधामयी किरणों से तीनों लोकों को सींच रहे हैं। दस घोड़ों के त्रिचक्र रथ पर आरूढ़ होकर सुमेरु की प्रदक्षिणा कर रहे हैं। इनके अधिदेवता उमा देवी हैं और प्रत्याधि देवता जल हैं।
मंगल
रक्तमाल्याम्बरधरः शक्तिशूलगदाधरः । चतुर्भुजः रक्तरोमा वरदः स्याद् धरासुतः ॥
मंगल भारद्वाज गोत्र के क्षत्रिय हैं। ये अवन्ति के स्वामी हैं। इनका अग्नि के समान रक्तवर्ण है, इनका वाहन मेघ है, रक्तवस्त्र और माला धारण किये हुए हैं। हाथों में शक्ति, वर, अभय और गदा धारण किये हुए हैं। इनके अंग-अंगसे कान्तिकी धारा छलक रही है। मेष के रथ पर सुमेरु की प्रदक्षिणा करते हुए अपने अधिदेवता स्कन्द और प्रत्याधि देवता पृथिवी के साथ सूर्य के अभिमुख जा रहे हैं।
बुध
पीतमाल्याम्बरधरः कर्णिकारसमद्युतिः । खड्गचर्मगदापाणिः सिंहस्थो वरदो बुधः ॥
बुध अत्रि गोत्र एवं मगध देश के स्वामी हैं । इनके शरीर का वर्ण पीला हैं । चार हाथों में ढाल, गदा, वर और खड्ग हैं । पीला वस्त्र धारण किये हुए हैं, बड़ी ही सौम्य मूर्ति हैं, सिंह पर सवार हैं । इनके अधिदेवता नारायण और प्रत्याधि देवता विष्णु हैं ।
बृहस्पति
देवदैत्यगुरू तद्वत् पीतश्वेतौ चतुर्भुजौ । दण्डिनौ वरदौ कार्यों साक्षसूत्रकमण्डलू ॥
बृहस्पति अंगिरा गोत्र के ब्राह्मण हैं । सिन्धु देश के अधिपति हैं । इनका वर्ण पीत हैं । पीताम्बर धारण किये हुए हैं, कमल पर बैठे हैं । चार हाथों में क्रमशः रुद्राक्ष, वरमुद्रा, शिला और दण्ड धारण किये हुए हैं । इनके अधिदेवता ब्रह्मा हैं और प्रत्याधि देवता इन्द्र हैं ।
शुक्र
देवदैत्यगुरू तद्वत् पीतश्वेतौ चतुर्भुजौ । दण्डिनौ वरदौ कार्यों साक्षसूत्रकमण्डलू ॥
शुक्र भृग गोत्र के ब्राह्मण हैं । भोजकट देश के अधिपति हैं । कमलपर बैठे हुए हैं । श्वेत वर्ण हैं, चार हाथों में क्रमशः रुद्राक्ष, वरमुद्रा, शिला और दण्ड है, श्वेत वस्त्र धारण किये हुए है । इनके अधिदेवता इन्द्र हैं और प्रत्याधि देवता चन्द्रमा हैं ।
शनि
इन्द्रनीलद्युतिः शूली वरदो गृध्रवाहनः । बाणबाणासनधरः कर्तव्योऽर्कसुतस्तथा ॥
शनि कश्यप गोत्र के शूद्र हैं । सौराष्ट्र प्रदेश के अधिपति हैं । इनका वर्ण कृष्ण है, ये कृष्ण वस्त्र धारण किये हुए हैं । चार हाथों में क्रमशः बाण, वर, शूल और धनुष हैं । इनका वाहन गृध्र हैं । इनके अधिदेवता यमराज और प्रत्याधि देवता प्रजापति हैं ।
राहु
करालवदनः खड्गचर्मशूली वरप्रदः । नीलसिंहासनस्थश्च राहुरत्र प्रशस्यते ॥
राहु पैठीनस गोत्र के शूद्र हैं । मलय देश के अधिपति हैं । इनका वर्ण कृष्ण हैं और वस्त्र भी कृष्ण ही हैं । इनका वाहन सिंह हैं । चार हाथों में क्रमशः खड्ग, वर, शूल और ढाल लिये हैं । इनके अधिदेवता काल हैं और प्रत्याधि देवता सर्प हैं ।
केतु
धूम्रा द्विबाहवः सर्वे गदिनो विकृताननाः । गृधासनगता नित्यं केतवः स्युर्वरप्रदाः ॥
केतु जैमिनी गोत्र के शूद्र हैं । कुशद्वीप के अधिपति हैं । इनका वर्ण धुएँ-सा हैं और वैसे ही वस्त्र भी धारण किये हुए हैं । मुख विकृत हैं, गिद्ध वाहन हैं । दो हाथों में क्रमशः वरमुद्रा तथा गदा हैं । इनके अधिदेवता चित्रगुप्त हैं तथा प्रत्याधि देवता ब्रह्मा हैं ।