Skip to content Skip to footer

भारतीय संस्कृति में नागों का बहुत महत्व है। नाग भगवान शिव के गले का हार है इन्हें शक्ति एवं सूर्य का अवतार माना गया है। अमृत-मन्थन के समय जब राहु का सिर काटकर अलग कर दिया गया, उस समय अमृत पीने के कारण उसका मरण नहीं हुआ। वह एक से दो हो गया। ब्रह्माजी ने उन दोनों में से एक (राहु)-को चन्द्रमा की छाया में और दूसरे (केतु) को पृथ्वी की छाया में रहने के लिये स्थान दिया। अतः छाया रूप राहु-केतु के द्वारा ही काल सर्प योग का  निर्माण  किया गया है। यह एक प्रकार का आकृति योग ही है।  राहू सिर एवं केतू घड  है सिर में विचार शक्ति होती है राहू के द्वारा बुद्धि को, भ्रमित करने के कारण जीवन कष्टमय हो जाता है। कालसर्प योग मे शारीरिक, आर्थिक, राजकीय कष्ट रहते  है।

 काल सर्पयोग राहू से केतू एवं केतू से राहू की ओर बनता है।  जब अन्य सभी ग्रह इनके मध्य में आ जाते है। तब वे अपना प्रभाव व्याग कर राहू-केतू के प्रभाव में आ जाते है। राहू केतू वक्र गति से चलते है। कालसर्प योग निर्माण पूर्वजन्मकृत दोष अथवा पितृ दोष के कारण बनता है। 

en_USEN