मानव जीवन के सुख-दुःख सभी शुभाशुभ विषयों का विवेचन करने वाला विभाग होरा शास्त्र है । इसमें इष्टकाल के द्वारा विविध कुण्डलियों का निर्माण कर जातक के पूर्वजन्म, वर्तमान जन्म तथा भविष्य के फलों के कथन की विधियाँ निरूपित हैं । इस स्कन्ध में ग्रह और राशियों का स्वरूप वर्णन, ग्रहों की दृष्टि, उच्च-नीच, मित्रामित्र, बलाबल आदि का विचार, द्वादश भावों द्वारा विचारणीय विषय, होरा, द्रेष्काण, नवमांश आदि का विवेचन, जन्मकाल, यमलादि सन्तानों का विमर्श, बालारिष्ट, आयुर्दाय, दशा-अन्तर्दशा, अष्टकवर्ग, गोचरविचार, राजयोग, नाभस आदि विविध योग, पूर्वजन्म आदि का विचार, तात्कालिक प्रश्नों का शुभाशुभ-निरूपण, विवाहादि संस्कारों का काल, नष्टजातक विचार, वियोनि-जन्मज्ञान आदि विषय सम्मिलित रहते हैं।
मृत्यु के अनन्तर जीव की गति क्या होती है, इसे बताते हुए आचार्य वराहमिहिर ने कहा है कि यदि जन्म समय अथवा मृत्यु के समय जन्म लग्न से केन्द्र या छठे अथवा आठवें स्थान में उच्च (कर्क) का बृहस्पति हो या मीन लग्न में बृहस्पति हो, शेष सभी ग्रह निर्बल हों मोक्ष की प्राप्ति होती है ।