अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल एवं रेवती नामक छह नक्षत्र गंड मूल नक्षत्र कहलाते हैं। यदि जन्म के समय चंद्रमा गंड मूल नक्षत्र में हो तो27 दिनों के पश्चात् जब वहीं नक्षत्र आता है, तब उसकी शांति कराई जाती है।
गंडांत योग
जहाँ राशि और नक्षत्र दोनों की समाप्ति एक साथ होती है, उसे गंड कहते हैं। तीन ऐसे स्थान आते हैं,
- पहला स्थान-कर्क राशि और आश्लेषा नक्षत्र
- दूसरा स्थान-वृश्चिक राशिऔरज्येष्ठा नक्षत्र
- तीसरा स्थान=मीन राशिऔररेवती नक्षत्र
आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती-इन नक्षत्रों के अंत की 48 मिनट और अश्विनी, मघा तथा मूल-इन नक्षत्रों के प्रारंभ की 48 मिनट इस प्रकार 1 घंटा 36 मिनट के समय को ‘गंडांत योग’ कहते हैं। इसमें सभी प्रकार के शुभ कार्य वर्जित हैं। ये समय स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद माना गया हैं।
- यदि जन्म के समय चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में हो तो उसका फल –
- प्रथम चरण (चू) : पिता को कष्ट
- द्वितीय चरण (चे) : ऐश्वर्यवान्
- तृतीय चरण (चो) : उच्च पद प्राप्ति
- चतुर्थ चरण (ला): राज्य-सम्मान
2.यदि जन्म के समय चंद्रमा आश्लेषा नक्षत्र में हो तो उसका फल
- प्रथम चरण(डी) : शांति से सुख
- द्वितीय चरण(डू) : धन-हानि
- तृतीय चरण(डे) : माता को कष्ट
- चतुर्थ चरण(डो) : पिता को कष्ट
3.यदि जन्म के समय चंद्रमा मघा नक्षत्र में हो तो उसका फल
- प्रथम चरण(म) : माता को कष्ट
- द्वितीय चरण(मी) : पिता को कष्ट
- तृतीय चरण(मु) : सुख-समृद्धि
- चतुर्थ चरण(में): धन-विद्या
4.यदि जन्म के समय चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो उसका फल
- प्रथम चरण(नो): भाई को कष्ट
- द्वितीय चरण(या) : अनुज को कष्ट
- तृतीय चरण(यी) : माता को कष्ट
- चतुर्थ चरण(यू) : स्वयं को कष्ट
5.यदि जन्म के समय चंद्रमा मूल नक्षत्र में हो तो उसका फल
- प्रथम चरण(ये) : पिता को कष्ट
- द्वितीय चरण(यो) : माता को कष्ट
- तृतीय चरण(भा) : धन-हानि
- चतुर्थ चरण(भी) : शांति से सुख
6.यदि जन्म के समय चंद्रमा रेवती नक्षत्र में हो तो उसका फल
- प्रथम चरण(दे) : राज्य-लाभ
- द्वितीय चरण(दो) : उच्च पद प्राप्ति
- तृतीय चरण(चा) : धन-लाभ
- चतुर्थ चरण(ची) : कष्टकारी
उक्त गंड मूल नक्षत्र में जन्म होने पर 27 दिनों के पश्चात् जब वहीं नक्षत्र आता है, तब उसकी शांति कराई जाती है।