अङ्गाधीशः स्वगेहे बुधगुरुकविभिः संयुतः केन्द्र गोवा स्वीये तुङ्गे स्वमित्रे यदि शुभभवने वीक्षितः सत्त्वरूपः ॥ स्यान्ननं पुण्यशीलः सकलजनमतः सर्वसम्पन्निधानं ज्ञानी मन्त्री च भूपः सुरुचिरन यनो मानवो मानवानाम् ॥
लग्न का स्वामी
- लग्न में हो
- बुध, बृहस्पति, शुक्र से युक्त हो
- केंद्र में हो
- उच्च का हो
- अपने मित्र के घर में हो
- 9वे घर में हो
- शुभ ग्रह से दृष्ट हो
तो वह जातक मनुष्यों के मध्य
- राजा होता है
- मंत्री होता है
- सब संपत्तियों का स्थान होता है
- ज्ञानी होता है
- सत्त्वगुणी होता है
- रूपवाला होता है
- सुंदर नेत्र वाला होता है
- उत्तम शरीर वाला होता है
- पुण्य वान होता है
- संपूर्ण जानकारो में मान्य होता है
देहाघीशः स पापो व्यपरिपुमृतिग श्वेत्तदादेहसौ ख्यं न स्पाजन्तोर्निजों व्यरिमृतिस्तत्फल स्पैव कर्ता ॥ मूर्ती चेत्क्रूरखेटस्तदनुतनुप॑तिः स्वीयवीर्येण हीनो नानातंकाकुलः स्याद्रजति हि मनुजो व्याधिमाधिप्रकोपम् ॥
लग्न का स्वामी पाप ग्रह से युक्त हो तो जातक को शरीर का सुख नहीं होता है।
लग्न का स्वामी 6,8,12 भाव में हो तो जातक को शरीर का सुख नहीं होता है।
6,8,12 भावो के स्वामी 6,8,12 भावो में हो तो जातक को शरीर का सुख नहीं होता है।
लग्न का स्वामी 6,8,12 भावो के स्वामियों के साथ हो तो जातक को शरीर का सुख नहीं होता है।
लग्न का स्वामी बल से हीन हो तो वह मनुष्य अनेक पीडा, रोग, चिंताओं को प्राप्त करता है।