जन्म चन्द्रमा, जन्मन क्षत्र और जन्म के महीने को छोड़ अन्य में बालक का कान छिदवाना चाहिये।
रविवार, शनिवार, मङ्गलवार को छोड़कर अन्य वारों में बालक का कान छिदवाना चाहिये।
श्रीहरि के जाग्रत्काल में सूर्य शुद्ध होने पर बालक का कान छिदवाना चाहिये।
पुष्य, अश्विनी, इस्त, श्रवण, घनिष्ठा, चित्रा, अनुराधा, मृगशिर, रेवती, स्वाति, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ, उत्तराभाद्रपदा और पुनर्वसु नक्षत्र में बालक का कान छिदवाना चाहिये।
लग्न के तीसरे, ग्यारहवें, नवमें, पांचवें और केन्द्र में शुभ ग्रह होने से और तीसरे, ग्यारहवें और छठे स्थान में पाप ग्रह होने सें बालक का कान छिदवाना चाहिये।
अयुग्म वर्ष में बालक का कान छिदवाना चाहिये।
घन, मीन, वृष और तुला लग्न में शुद्ध काल में बालक का कान छिदवाना चाहिये।