प्रायः समस्त भारतीय विज्ञान का लक्ष्य एक मात्र अपनी आत्मा का विकास कर उसे परमात्मा में मिला देना है । विज्ञान का ध्येय विश्व की गूढ़ पहेली को सुलझाना है । ज्योतिष भी विज्ञान होने के कारण इस अखिल ब्रह्माण्ड के रहस्य को व्यक्त करने का प्रयत्न करता है । ज्योतिष शास्त्र का अन्य नाम ज्योतिः शास्त्र है, जिसका अर्थ प्रकाश देने वाला है अर्थात् जिस शास्त्र से संसार का मर्म, जीवन-मरण का रहस्य और जीवन के सुख-दु:ख के सम्बन्ध में पूर्ण प्रकाश मिले, वह ज्योतिष शास्त्र है ।भारतीय ज्योतिष शास्त्र के निर्माताओं के व्यावहारिक और पारमार्थिक ये दो लक्ष्य रहे हैं । ग्रह-रश्मियों का प्रभाव केवल मानव पर ही नहीं, अपितु वन्य, स्थलज एवं उद्भिज्ज आदि पर भी अवश्य पड़ता है । ज्योतिष शास्त्र में मुहूर्त-समय-विधान की जो कर्मप्रधान व्यवस्था है, उसका रहस्य इतना ही है कि गगनगामी ग्रह-नक्षत्रों की अमृत, विष एवं अन्य उभय गुण वाली रश्मियों का प्रभाव सदा एक-सा नहीं रहता । गति की विलक्षणता के कारण किसी समय में ऐसे नक्षत्र या ग्रहों का वातावरण रहता है, जो अपने गुणों और तत्त्वों की विशेषता के कारण किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिये ही उपयुक्त हो सकते हैं । विभिन्न कार्यों के लिये मुहूर्त शोधन अन्ध श्रद्धा या विश्वास की चीज नहीं है, अपितु विज्ञान सम्मत रहस्यपूर्ण है । कुशल परीक्षण के अभाव में विषमता दिखलायी पड़ सकती है ।