प्राणी की आंतरिक संरचना का आधार परमाणु है। शरीर विज्ञान की भाषा में जिन्हें कोशिकाएँ कहते है कोशिकाओं से मिलकर शरीर बनता है शरीर और मन के जो शत्रु काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मत्सर है इनके कारण विकार उत्पन्न होता है जिसके मनुष्य शारीरिक और मानसिक पीडा प्राप्त करता हैं इन्ही विकारो को दूर करने के लिए मनुष्य को धार्मीक आचरण और क्रिया का पालन करना चाहिए इस प्रकार व्यक्ति धर्म के सहारे निरोगी रहकर अपने भोगों को भोगकर इस संसार सागर को पार करने में सफल रहता हैं जैसे कहा गया है आप धर्म की रक्षा करो धर्म आपकी रक्षा करेगा।
हमारे ऋषि मुनियों ने और जैसा भगवद गीता में में बताया गया है कि मनुष्य ने एक बार कर्म कर दिया तो उसका फल उसे अनिवार्य रूप से मिलेगा लेकिन वह कर्म करने या नहीं करने में अपनी इच्छा शक्ति का प्रयोग कर सकता है।