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संतान हानि योग

पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार श्राप दोष के कारण संतान हानि होती है यदि उस श्राप का निवारण किया जाये तो संतान प्राप्ति संभव है सर्प श्राप राहुपितृ श्रापसूर्यमातृ श्रापचन्द्रभाई श्रापमंगलब्रह्म श्रापगुरूपत्नि श्रापशुक्रप्रेत श्रापशनि सर्प श्राप राहू का प्रभाव पंचम भाव पंचमेश, भाव कारक के साथ पाप ग्रहों और विशेष मंगल के साथ सम्बन्ध…

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रोग और धर्म

प्राणी की आंतरिक संरचना का आधार परमाणु है। शरीर विज्ञान की भाषा में जिन्हें कोशिकाएँ कहते है कोशिकाओं से मिलकर शरीर बनता है शरीर और मन के जो शत्रु काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मत्सर है इनके कारण विकार उत्पन्न होता है जिसके मनुष्य शारीरिक और मानसिक पीडा प्राप्त करता हैं इन्ही विकारो को दूर…

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शनि साढ़ेसाती – फल

शनि देव की साढ़ेसाती का विचार चन्द्र कुंडली से किया जाता है। चन्द्र कुंडली के अनुसार जब शनि देव द्वादश भाव में प्रवेश करते है तो साढेसाती प्रारम्भ होती है और जब चन्द्र कुण्डली से तृतीय भाव में प्रवेश करते हैं तो साढ़ेसाती समाप्त होती है। चन्द्र कुण्डली से जब शनि देव द्वादश भाव, प्रथम…

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रोग प्रश्न लग्न

जिस लग्न में रोगी प्रश्न करें उसके अनुसार देव दोष ज्ञान लग्नदोषमेषदेवी दोषवृषपितृ दोषमिथुनशाकिनी दोषकर्कभूत दोषसिंहभाइयो का दोषकन्याकुल देवता का दोषतुलाचण्डिका दोषवृश्चिक नाडी दोषधनुयक्षिणी दोषमकरग्राम देवता का दोषकुम्भनजर दोषमीनआकाश गंगा का दोष पंडित पवन कुमार शर्मा

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रोग-प्रश्न-देव-बाधा-ज्ञान

प्रश्न समय के अनुसार तिथी + वार + नक्षत्र + प्रहर + लग्न इन सभी को जोडकर 8 का भाग देते हैं शेष जो बचे उसके अनुसार बाधा होती है शेष - 3,7 देव बाधा 0,2 पितृ बाधा 4,6 भूत बाधा 1,5 बाधा नही है पंडित पवन कुमार शर्मा

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कुंडली मिलान जैमिनि

मिलान के चरण - दाराकारक से वर-कन्या के प्रेम, शारीरीक आकर्षण और सुख का विचार किया जाता है। यदि दोनों की कुण्डलीयों में दाराकारक- 3,11 का सम्बन्ध हो 5,9 का सम्बन्धा हो एक दूसरे से केन्द्र में हो तो वर-कन्या के बीच में प्रेम और शारीरीक सम्बन्ध अच्छा रहेगा और यदि षडाष्टक 6-8 और…

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उम्र के अनुसार अच्छे दिन

बाल अवस्था युवा अवस्था वृद्धा अवस्था कुंडली में 12 भाव होते है 1 से 4 , 5 से 8 और 9 से 12 भाव के सर्वाष्टक वर्ग बिन्दुओं को जोडिए जिस अवस्था में बिन्दु अधिक होंगे वह अवस्था शुभ रहेगी जिस अवस्था में बिन्दु कम होंगे यह अवस्था ठीक नहीं रहेगी। पंडित पवन कुमार शर्मा

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भाग्योदय दिशा या सभी कार्यों के लिए अनुकूल दिशा

अष्टक वर्ग के अनुसार भाग्योदय दिशा या अनुकूल दिशा का ज्ञान किया जाता है। सभी राशियों की दिशाएँ होती है जैसे - मेष, सिंह, धनु - पूर्व दिशा मिथुन, तुला, कुम्भ - पश्चिम दिशा कर्क वृश्चिक, मीन- उत्तर दिशा सर्वाष्टक वर्ग के अनुसार उपरोक्त राशियों का दिशाओं के अनुसार योग करे। इस प्रकार…

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