प्रकाश का विस्तार और सन्तुलन करने वाले “रत्न” है । मानव शरीर पर विभिन्न ग्रह-प्रभाव का विस्तार और सन्तुलन करना ही रत्नों का कार्य है । रत्नों का अनुकूल प्रभाव व्यक्ति के शरीर व मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता हैं तथा वह व्यक्ति उचित कार्य करने लगता है । रत्नों का प्रतिकूल प्रभाव व्यक्ति के शरीर व मन में नकारात्मक उर्जा का संचार करता हैं तथा वह व्यक्ति अनुचित कार्य करने लगता है । मनुष्य के शरीर में विद्युत् शक्ति का संचार रहता है । सौरमण्डलीय वातावरण का प्रभाव पंच तत्वों पर पड़ता है । पत्थरों के रंग-रूप आकार-प्रकार का निर्माण किसी तत्व की प्रधानता के कारण होता है ।
ग्रह के जिस तत्व के प्रभाव से जो रत्न प्रभावित होता है, उसका प्रयोग व्यक्ति के शरीर व मन में सकारात्मक उर्जा का संचार करने के लिए किया जाता है । 27 नक्षत्रों तथा नौ ग्रहों का शुभ-अशुभ प्रभाव मानव शरीर के सभी अंगों पर पड़ता है । उस प्रभाव को सन्तुलित करने के लिये रत्न धारण करने का विधान है ।