शस्त्रघात से जिनकी मृत्यु हुई हो, मरण काल में अस्पृश्य व्यक्ति से जिनका स्पर्श हो गया हो और जिनकी मरण कालिक शास्त्रोक्त विधि पूर्ण न की जा सकी हो, उन व्यक्तियों का इस प्रकार का मरण 'दुर्मरण' कहा जाता है । नारायण बलि बिना किये जो कुछ जीव के उद्देश्य से श्राद्ध आदि प्रदान किया…
देवकार्यादपि सदा पितृकार्य विशिष्यते ।
देवताभ्यो हि पूर्वं पितॄणामाप्यायनं वरम् ॥
(हेमाद्रि में वायु तथा ब्रह्मवैवर्त का वचन)
देव कार्य की अपेक्षा पितृकार्य की विशेषता मानी गयी है । अतः देवकार्य से पूर्व पितरों को तृप्त करना चाहिये ।
अपनी उन्नति चाहने वाला श्राद्ध में भक्तिभाव से पितरों को प्रसन्न करता है, उसे पितर भी सन्तुष्ट करते…