पहचानकर्क राशि का स्वरूप- आकाशीय राशि प्रदेश में तारो को यदि रेखाओ से मिलाया जाये तो पृथ्वी के किसी बिंदु से आकाश में देखने पर केंकड़े के समान आकार दिखाई देता है । जातक का स्वरूपकार्य करने वाला, धनवान, शूर, धार्मिक गुरु का प्रिंय, सर से रोगी, अतीव बुद्धिमान, दुर्बल शरीर वाला, सभी कार्यों का…
पहचानमिथुन राशि का स्वरूप- आकाशीय राशि प्रदेश में तारो को यदि रेखाओ से मिलाया जाये तो पृथ्वी के किसी बिंदु से आकाश में देखने पर नर व नारी (जोड़े) के समान आकार दिखाई देता है । जातक का स्वरूपचंचल मृदुभाषी, दयालु, कामुक, संगीत प्रेमी, कण्ड रोगी, यशस्वी, धनी, गुणवान गौरवर्ष, लम्बे शरीर वाला, कार्यकुशल वक्ता,…
पहचानवृष राशि का स्वरूप- आकाशीय राशि प्रदेश में तारो को यदि रेखाओ से मिलाया जाये तो पृथ्वी के किसी बिंदु से आकाश में देखने पर नर वृषभ/बैल के समान आकार दिखाई देता है । जातक का स्वरूपदीर्घजीवी, भोगी, दानी, पवित्र, कुश्ल, सत्व सम्पन्न, महान बली, धनवान, भोगविलास रत तेजस्वी, अच्छे मित्रों वाला होता है। स्वामी ग्रहशुक्र दिशा…
पहचानमेष राशि का स्वरूप- आकाशीय राशि प्रदेश में तारो को यदि रेखाओ से मिलाया जाये तो पृथ्वी के किसी बिंदु से आकाश में देखने पर नर भेड़ के समान आकार दिखाई देता है । जातक का स्वरूपचंचल नेत्रों वाला, पापरहित, क्रोधी, बुद्धिमान, महत्वकांक्षी, कर्तव्यपरायण, प्रतिज्ञापालक, सहासी, निडर, व्यसनी, कामुक, कमनियो को आनंदित करने वाला, कृतघन,…
सूर्यचन्द्रमंगलबुधगुरुशुक्रशनिराहुकेतुमाणिक्यसफेद चावललाल चन्दनकांस्यपात्रपीला धान्यसफेद चंदननीलम, तिलसप्तधान्यकम्बल, कस्तूरीगेहूं, गुड़सफेद वस्त्रमसूरहरा वस्त्रपीला वस्त्र,सोनासफेद चावलउड़द, तेलउड़द, हेमनागउड़दसवत्सा गौसफेद चन्दनगेहूंघीघी, पीला फलसफेद वस्त्रकाला वस्त्रनीला वस्त्र, गोमेदकाला पुष्पकमल-फुलसफेद फुलगुड़, लाल चंदनमूंग, पन्नापीला तेलसफेद फुललोहाकाला फुलतिलतेललाल चन्दनचीनी, चांदीलाल वस्त्रसोनापुखराजचांदीकाली गायखड्ग, तिलरत्न, सोनालाल वस्त्रबैल, घीलाल फुलरत्नहल्दीदहीकाला फुलतेल, लोहालोहासोना, तांबाशंख, दहीसोना, तांबाकपूरपुस्तक, मधुसुगन्धित द्रव्यछाताकम्बलशस्त्रकेसर, मूंगामोती,कपूरकेसरफलनमक, चीनीचीनी, गौसोनासोना, रत्नसप्तधान्यदक्षिणादक्षिणादक्षिणादक्षिणादक्षिणादक्षिणादक्षिणादक्षिणादक्षिणाज.स. 7000 ज.स. 11000 ज.स.…
कल्प पाँच प्रकार के माने गये हैं-
नक्षत्रकल्प वेदकल्प संहिताकल्प आङ्गिरसकल्प शान्तिकल्प
नक्षत्रकल्प में नक्षत्रों के स्वामी का विस्तारपूर्वक यथार्थ वर्णन किया गया है । वेदकल्प में ऋगादि-विधानका विस्तारसे वर्णन है — जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि के लिये कहा गया है । संहिताकल्प में तत्त्वदर्शी मुनियों ने मन्त्रों के ऋषि,…
तिथिवारं च नक्षत्रं योगः करणमेव च ।
यत्रैतत्पञ्चकं स्पष्टं पञ्चाङ्गं तन्निगद्यते ॥
जानाति काले पञ्चाङ्गं तस्य पापं न विद्यते ।
तिथेस्तु श्रियमाप्नोति वारादायुष्यवर्धनम् ॥
नक्षत्राद्धरते पापं योगाद्रोगनिवारणम् ।
करणात्कार्यसिद्धिः स्यात्पञ्चाङ्गफलमुच्यते ॥
पञ्चाङ्गस्य फलं श्रुत्वा गङ्गास्नानफलं लभेत् ।
तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण- इन पाँचों का जिसमें स्पष्ट मानादि रहता है, उसे पंचांग कहते हैं । जो…
प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों के पास आज की तरह न तो विकसित वेधशालाएँ थीं और न सूक्ष्म परिणाम देने वाले आधुनिकतम वैज्ञानिक उपकरण, फिर भी वे अपने अनुभव तथा अतीन्द्रिय ज्ञान के सहारे आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों आदि का अध्ययन करके वर्षां पूर्व मौसम का पूर्वानुमान कर लेते थे । यद्यपि वैदिक संहिताओं, पुराणों, स्मृतियों में इस…