ज्योतिष में रत्नों की विशेष महिमा है। रत्नों की चमत्कारी शक्ति का सम्बन्ध आकाशीय ग्रहों से है।प्रत्येक ग्रह में प्राकृतिक गुण होते हैं। ग्रह विशेष और रत्नविशेष की प्रकृति में गुणसाम्य है। यथा –
सूर्य – माणिक्य,
चन्द्र – मोती,
मंगल – मूँगा,
बुध – पन्ना,
गुरु – पुखराज,
शुक्र – हीरा,
शनि – नीलम,
राहु – गोमेद,
केतु – लहसुनिया
में गुणसाम्य है। ग्रहों की रश्मियाँ अपनी तरह के गुण वाले रत्नों की ओर स्वतः आकर्षित होती हैं। जातक के जन्मकालिक ग्रहों की स्थिति के आधार पर शुभ-अशुभ का निर्धारण किया जाता है और इन्हीं शुभ-अशुभ ग्रहों के अनुसार धारणीय रत्नों का निर्धारण होता है।
रत्न तीन प्रकार से प्रभाव डालते हैं –
- शुभ कर्मों के भोग में आने वाली बाधाओं को हटाना |
- अशुभ ग्रहों के प्रभाव से रक्षा करना |
- सात्त्विक, परंतु दुर्बल ग्रहों में अतिरिक्त बल की वृद्धि करना ।
जैसे एक छतरी आने वाली बरसात को रोक नहीं सकती, परंतु व्यक्ति को बरसात के पानी से बचा सकती है। इसी प्रकार रत्न के धारण करने से ग्रहों के दुष्प्रभाव से पूर्व रक्षा होती है ।