मुहूर्त के आधार पर ही मानव समाज अपने कार्य करते हैं तथा प्रारब्ध और पुरुषार्थ के अनुसार फल प्राप्त करते है ।
वर्ष मासो दिन सम्म मुहूर्तश्चेति पचक्रमा । कालस्यागानि मुख्यानि प्रबलान्युत्तरोत्तरम् ।। पंचस्वेतेषु शुद्धेषु समयः शुद्ध उच्यते । मासो वर्षभव दोष हन्ति मामभव दिनम् ।। लम दिनभव हन्ति मुहूर्तः सर्वदूषणम् । तस्मात् शुद्धिर्मुहूर्तस्य सर्वकार्येषु शस्यते ।।
पहला वर्ष, दूसरा मास, तीसरा दिन, चौथा लग्न और पाँचवाँ मुहूर्त, 5 काल के अंगों में ये प्रधान माने गये हैं। ये उत्तरोत्तर बली है। इन्हीं पाँच की शुद्धि से समय शुद्ध समझा जाता है। यदि मास शुद्ध हो तो अशुद्ध वर्ष का दोष नष्ट हो जाता है एवं दिन शुद्ध हो तो अशुद्ध मास का दोष नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार लग्न शुद्धि से दिन का दोष तथा मुहूर्तशुद्धि से सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।