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ज्योतिष विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान का सम्बन्ध प्राचीन काल से रहा है । पूर्वकाल में एक सुयोग्य चिकित्सक के लिये ज्योतिष विषय का ज्ञाता होना अनिवार्य था । इससे रोग निदान में सरलता होती थी ज्योतिष शास्त्र के द्वारा रोग की प्रकृति, रोग का प्रभाव क्षेत्र, रोग का निदान और साथ ही रोग के प्रकट होने की अवधि तथा कारणों का विश्लेषण किया जा सकता है । ज्योतिष शास्त्र में द्वादश राशियों, नवग्रहों, सत्ताईस नक्षत्रों आदि के द्वारा रोग के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है । जन्म-चक्र में स्थित प्रत्येक राशि, ग्रह आदि शरीर के किसी-न-किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं । जिस ग्रह आदि का दूषित प्रभाव होता है, उससे सम्बन्धित अंग पर रोग का प्रभाव रह सकता है । ज्योतिष विज्ञान में किसी भी विषय के ज्ञान के लिये जन्म-चक्र के तीन बिन्दुओं-लग्र, सूर्य तथा चन्द्र का अलग-अलग और परस्पर एक-दूसरे से अन्तः सम्बंधो का विश्लेषण मुख्य होता है । लग्न मस्तिष्क का, चन्द्र मन, उदर और इन्द्रियों का तथा सूर्य आत्मस्वरूप एवं हृदय का प्रतिनिधित्व करता है ।

नवग्रह-रोग-अंग

नवग्रहों के आधार पर  रोग की पहचान-

गृहअंगरोग
सूर्य    सिर, हृदय, आँख (दायीं), मुख, तिल्ली, गला, मस्तिष्क, पित्ताशय, हड्डी, रक्त, फेफड़े, स्तन ।  मस्तिष्क रोग, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, उदर विकार, मेननजाइटिस, मिरगी, सिरदर्द, नेत्रविकार, बुखार ।  
चन्द्र      छाती, लार, गर्भ, जल, रक्त, लसिका ग्रन्थियाँ, कफ, मूत्र, मन, आँख (बायीं), उदर, डिम्बग्रन्थि, जननाङ्ग (महिला) ।    नेत्ररोग, हिस्टीरिया, ठंड, कफ, उदर-रोग, अस्थमा, डायरिया, दस्त, मानसिक रोग, जननाङ्ग रोग (स्त्रियोचित), पागलपन, हैजा, ट्यूमर, ड्रॉप्सी ।  
मंगल        पित्त, मात्रक, मांसपेशी, स्वादेन्द्रिय, पेशीतन्त्र, तन्तु, बाह्य-जननाङ्ग, प्रोस्टेट, गुदा, रक्त, अस्थि-मज्जा, नाक, नस, ऊतक ।      तीव्र ज्वर, सिरदर्द, मुँहासे, चेचक, घाव, जलन, कटना, बवासीर, नासूर, साइनस, गर्भपात, रक्ताल्पता, फोड़ा, लकवा, पक्षाघात, पोलियो, गले-गर्दनके रोग, हाइड्रोसील, हर्निया ।  
बुध      स्नायु-तन्त्र, जीभ, आँत, वाणी, नाक, कान, गला, फेफड़े ।      मस्तिष्क-विकार, स्मृतिहास, पक्षाघात, हकलाहट, दौरे आना, सूँघने, सुनने अथवा बोलनेकी शक्ति का ह्रास ।  
बृहसपति        यकृत्, नितम्ब, जाँघ, मांस, चर्बी, कफ, पाँव ।        पीलिया, यकृत्-सम्बन्धी रोग, अपच, मोतियाबिन्द, रक्त कैंसर, फुफ्फुसावरण, शोथ, वात, बादी, उदर-वायु, तिल्ली-कष्ट, साइटिका, गठिया, कटिवेदना, नाभि-चलना ।  
शुक्र        जननाङ्ग, आँख, मुख, ठुड्डी, गाल, गुर्दे, ग्लैण्ड, वीर्य ।        काले-नीले धब्बे, चमड़ीके रोग, कोढ़, सफेद दाग, गुप्ताङ्ग रोग, मधुमेह, नेत्ररोग, मोतियाबिन्द, रक्ताल्पता, एक्जिमा, मूत्ररोग । (क्रमश:)    
शनि        पाँव, घुटने, श्वास, हड्डी, बाल, नाखून, दाँत, कान ।        बहरापन, दाँत-दर्द, पायरिया, ब्लडप्रेशर, कठिन उदरशूल, आर्थराइटिस, कैंसर, स्पांडलाइटिस, हाथ-पाँवकी कँपकपाहट, साइटिका, मूर्च्छा, जटिल रोग ।    
राहू, केतु  राहु मुख्यतः शरीरके ऊपरी हिस्से और केतु शरीरके निचले धड़को बतलाता है ।प्राय: ये दोनों ग्रह क्रमश: शनि और मंगलके अनुरूप रोग-व्याधि देते हैं या जिस राशि – भावमें बैठते हैं, उसके अनुरूप रोग-व्याधि देते हैं । राहु, केतुसे सम्बन्धित रोगकी पहचान प्रायः कठिनाईसे हो पाती है ।

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