लग्न-
लग्न- बालक का जब जन्म हुआ, उस समय पूर्व दिशा में किस राशि का उदयमान था, जिस राशि का समय-काल था, वही जन्म-लग्न है।
होरास्कन्ध-
मानव जीवन के सुख-दुःख, सभी शुभ-अशुभ विषयों का विवेचन करने वाला शास्त्र ही होराशास्त्र है। होरा शब्द की उत्पत्ति अहोरात्र शब्द से हुई है। अहोरात्र शब्द के प्रथम एवं अन्तिम अक्षर का लोप करने पर ‘होरा’ शब्द का निर्माण होता है। एक राशि में 2 होराएँ होती हैं। सम्पूर्ण अहोरात्र में क्रान्तिवृत्तस्थ 12 राशियों का स्पर्श पूर्वक्षितिज में हो जाता है, जिस कारण 12 लग्न एक दिन-रात में होते हैं। अतः 12 लग्नों की 24 होराएँ होती हैं। वस्तुतः जन्मकुण्डली में लग्न का अत्यधिक महत्त्व है। साथ ही सूक्ष्म विवेचन हेतु होरा-कुण्डली का भी विचार किया जाता है। होराशास्त्र का दूसरा नाम जातकशास्त्र भी है।
होरास्कन्ध का विषय-
होरास्कन्ध में मुख्य ग्रह एवं राशियों का स्वरूप वर्णन, ग्रहों की दृष्टि, उच्च-नीच, मित्रामित्र, बलाबल आदि का विचार, द्वादश भावों द्वारा विचारणीय विषय एवं उन में स्थित ग्रहों का शुभाशुभ फलविवेचन, जातक का अरिष्टविचार, वियोनि जन्मविचार, राजयोग, प्रव्रज्यायोग, दरिद्रयोग आदि अनेक विध शुभाशुभ योगविचार, सूर्यकृत योग, चन्द्रकृत योग, नाभसयोग, आयुर्दाय विचार, अष्टकवर्ग विचार, होरा सप्तमांशादि दशवर्ग-साधन, ग्रहविंशोपकादि बलसाधन, विंशोत्तरी आदि दशान्तर्दशादि का साधन, नक्षत्रादि जनन फलविचार आदि विषय सम्मिलित हैं।
कुण्डली
होरा कुण्डली-
15 अंश की एक होरा होती है, एक राशि 30 अंश की होती है। अतः एक राशि में दो होरा होती हैं। विषम राशि में प्रारम्भ के 15 अंश तक सूर्य की होरा होती है। 16 से 30 तक चन्द्रमा की होरा होती है। सम राशियों में शुरू के 15 अंश तक चन्द्रमा की होरा होती है। बाद में 16 से 30 अंश तक सूर्य की होरा रहती है।
द्रेष्काण कुण्डली-
10 अंश का एक द्रेष्काण होता है। इस प्रकार एक राशि में 3 द्रेष्काण होते हैं। 1 में 10 अंश तक प्रथम द्रेष्काण 11-20 अंश तक द्वितीय द्रेष्काण एवं 21 से 30 अंश तक तृतीय द्रेष्काण होता है।
सप्तांश कुण्डली-
एक राशि के ३० अंश होते हैं, इन अंशों में ७ का भाग देने से ४ अंश, १७ कला एवं ९ विकलाका एक सप्तांश होता है।
नवमांश कुण्डली-
एक राशि के नौवें भाग को नवमांश कहते हैं।3 अंश20 कला का एक नवमांश होता है।
दशमांश कुण्डली-
एक राशि में दस दशमांश निर्धारित करने पर एक दशमांश 3 अंश का बनता है। दशमांश गणना विषम राशियों के उसी राशि से गणना की जाती है। सम राशियों में उस राशि के नवम राशि से दशमांश की गणना की जाती है। यह दशमांश कुण्डली बनाने का नियम है।
द्वादशांश कुण्डली-
एक राशिका द्वादशांश 2 अंश 30 कला का बनता है। द्वादशांश गणना अपनी राशि से ही की जाती है।
षोडशांश कुण्डली-
एक राशि के 16 अंश को षोडशांश कहते हैं। एक षोडशांश 1 अंश 52कला 30विकला का होता है |
त्रिंशांश-कुण्डली-
विषम राशियों में प्रथम 5 अंश मंगल का, दूसरा 5 अंश शनि का, तीसरा 8 अंश धनुराशि बृहस्पति का, चौथा 7 अंश मिथुन राशि बुध का और पाँचवाँ 5 अंश तुला राशि का होता है।सम राशियों में प्रथम 5 अंश वृष राशि शुक्र का, दूसरा 7अंश कन्या राशि बुध का, तीसरा 8 अंश मीन राशि बृहस्पति का, चौथा 5 अंश मकर राशि शनि का और पाँचवाँ 5 अंश वृश्चिक राशि मंगल का त्रिंशांश होता है।