सूर्ययन्त्रम्
रसेन्दुनागा नगवाणरामा, युग्माङ्कवेदा नवकोष्ठमध्ये । विलिख्य धार्यं गदनाशनाय, वदन्ति गर्गादिमहामुनीन्द्राः ॥
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7 | 5 | 3 |
2 | 9 | 4 |
चन्द्रयन्त्रम्
नागद्विनन्दा गजषट् समुद्रा शिवाक्षिदिग्वाणविलिख्य कोष्ठे । चन्द्रकृतारिष्टविनाशनाय धार्यं मनुष्यैः शशियन्त्रमीरितम् ॥
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6 | 6 | 4 |
3 | 10 | 5 |
मंगलयन्त्रम्
गजाग्निदिश्याथनवाद्रिवाणा पातालरुद्रारससंविलिख्य । भौमस्य यन्त्रं क्रमशो विधार्य मनिष्टनाशं प्रवदन्ति गर्गाः ॥
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1 | 7 | 5 |
4 | 11 | 6 |
बुधयन्त्रम्
नवाब्धिरुद्रा दिङ्नागषष्ठा वाणार्कसप्ता नवकोष्ठयन्त्रे । विलिख्य धार्यं गदनाशहेतवे वदन्ति यन्त्रं शशिजस्य धीराः ॥
9 | 5 | 11 |
10 | 8 | 6 |
5 | 12 | 7 |
बृहस्पतियन्त्रम्
दिग्वाणसूर्या शिवनन्दसप्ता षड्विश्वनागाक्रमतोऽङ्ककोष्ठे । विलिख्य धार्यं गुरुयन्त्रमीरितं रुजाविनाशाय वदन्ति तद्बुधाः ॥
10 | 5 | 12 |
11 | 9 | 7 |
6 | 13 | 8 |
शुक्रयन्त्रम्
रुद्राङ्गविश्वा रविदिग्गजाख्या नगामनुश्चाङ्कक्रमाद्विलेख्याः । भृगोः कृतारिष्टविनाशनाय धार्यं हि यन्त्रं मुनिना प्रकीर्तितम् ॥
11 | 6 | 13 |
12 | 10 | 8 |
7 | 14 | 9 |
शनियन्त्रम्
अर्काद्रिमन्वा स्मर रुद्र अङ्का नागाख्यतिथ्यादश मंदयन्त्रम् । विलिख्य भूर्जोपरिधार्यमेत च्छने: कृतारिष्टनिवारणाय ॥
12 | 7 | 14 |
13 | 11 | 9 |
8 | 15 | 10 |
राहुयन्त्रम्
विश्वाष्टतिथ्यामनुसूर्यदिश्या खगामहीन्द्रैकदशांशकोष्ठे । विलिख्य यन्त्रं सततं विधार्यं राहोः कृतारिष्टनिवारणाय ॥
13 | 8 | 14 |
13 | 8 | 14 |
9 | 16 | 11 |
केतुयन्त्रम्
मनुखेचरभूपतिथिविश्व शिवादिक् सप्तादशसूर्यमिता । क्रमशो विलिखेन्नवकोष्ठमिते परिधार्य नरा दुःखनाशकराः ॥
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