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कटुलवणतिक्तमिश्रो मधुराम्लौ च कषायकोऽर्कतः ।
एते रसाःप्रिया भवन्ति मुखेऽर्काद्या वर्तमानाः सन्तः ॥

सूर्य ग्रह कटु रस का अधिपति (स्वामी) है।

चन्द्र ग्रह लवण रस का अधिपति (स्वामी) है।

मङ्गल ग्रह तिक्त रस का अधिपति (स्वामी) है।

बुध ग्रह मिश्रित रस का अधिपति (स्वामी) है।

वृहस्पति ग्रह मधुर रस का अधिपति (स्वामी) है।

शुक्र ग्रह अम्ल रस का अधिपति (स्वामी) है।

शनि ग्रह कषैले रस का अधिपति (स्वामी) है।

जातक के जिस स्थान में जो ग्रह पतित होता है, उस जातक को उस ग्रह का रस प्रिय होता है।

सूर्य मुख स्थान में रहने से कटु वस्तु प्रिय होती है और चन्द्र मुख स्थान में रहने से लवण रस आहार प्रिय होता है।

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