सामग्री पर जाएं Skip to sidebar Skip to footer

संस्कार

संस्कार क्यों- चौरासी लाख योनियों में भटकता हुआ प्राणी भगवत्कृपा से तथा अपने पुण्यपुंजों से मनुष्य योनि प्राप्त करता है। मनुष्य शरीर प्राप्त करने पर उसके द्वारा जीवन पर्यन्त किये गये अच्छे-बुरे कर्मों के अनुसार उसे पुण्य-पाप अर्थात् सुख-दुःख आगे के जन्मों में भोगने पड़ते हैं-'अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।' शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार ही…

और पढ़ें

रत्न-विज्ञान

 ज्योतिष में रत्नों की  विशेष महिमा है। रत्नों की  चमत्कारी शक्ति का सम्बन्ध आकाशीय ग्रहों से है।प्रत्येक ग्रह में  प्राकृतिक गुण होते  हैं।  ग्रह विशेष और  रत्नविशेष की प्रकृति में  गुणसाम्य है।  यथा –  सूर्य - माणिक्य,  चन्द्र - मोती, मंगल - मूँगा,  बुध - पन्ना, गुरु - पुखराज,  शुक्र - हीरा,  शनि - नीलम,…

और पढ़ें

स्वरविज्ञान और ज्योतिषशास्त्र

जन्म के साथ ही मानव को स्वरोदय-ज्ञान मिला है। यह  विशुद्ध वैज्ञानिक आध्यात्मिक ज्ञान-दर्शन है, प्राण ऊर्जा है, विवेक शक्ति है। स्वर-साधना  अनुभव से हमारे ऋषि-मुनियों ने भूत, भविष्य और वर्तमान को जाना है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अंक ज्योतिष, स्वप्न ज्योतिष, स्वरोदय- ज्योतिष, शकुन-ज्योतिष, सामुद्रिक हस्तज्योतिष, शरीरसर्वांगलक्षणज्योतिष हैं। इन सब में तत्काल प्रभाव और…

और पढ़ें

ज्योतिष और आयुर्वेद

जन्मपत्री पूर्वार्जित कर्मों को जानने का माध्यम है । पूर्वकृत कर्म से मनुष्य को कौन-सी व्याधि होगी? इसका ज्ञान ज्योतिष विद्या से ही प्राप्त होता है । भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ चार वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है । इसके अन्तर्गत ज्योतिष एवं चिकित्सा विज्ञान का वर्णन है । दोनों एक दूसरे के पूरक…

और पढ़ें

सप्त ऋषि

विभिन्न मन्वन्तरों में धर्म और मर्यादा की रक्षा के  लिये तथा अपने सदाचरण से  उत्तम शिक्षा प्रदान करने के लिये सात ऋषि उत्पन्न (अवतरित) होते हैं । ये ही सप्तर्षि कहलाते हैं । इन्हीं की तपस्या, शक्ति, ज्ञान और जीवन-दर्शन के प्रभाव से सारा संसार सुख और शान्ति प्राप्त करता है । ये ऋषिगण लोकहितमें…

और पढ़ें

भद्रा

भद्रा भगवान् सूर्य की पुत्री हैं । ये सूर्य पत्नी छाया से उत्पन्न हैं और शनैश्चर की बहन हैं । भद्रा का वर्ण काला, रूप भयंकर, केश लम्बे और दाँत बड़े विकराल हैं । जन्म होते ही वह संसार का ग्रास करने के लिये दौड़ी, यज्ञों में विघ्न-बाधा पहुँचाने लगी, उत्सवों तथा मंगल-यात्रा आदि में…

और पढ़ें

श्राद्ध में भक्तिभाव

देवकार्यादपि सदा पितृकार्य विशिष्यते । देवताभ्यो हि पूर्वं पितॄणामाप्यायनं वरम् ॥ (हेमाद्रि में वायु तथा ब्रह्मवैवर्त का वचन) देव कार्य की अपेक्षा पितृकार्य की विशेषता मानी गयी है । अतः देवकार्य से पूर्व पितरों को  तृप्त करना चाहिये । अपनी उन्नति चाहने वाला श्राद्ध में भक्तिभाव से पितरों को प्रसन्न करता है, उसे पितर भी सन्तुष्ट करते…

और पढ़ें

नवग्रहों के निमित दान

जब जन्म कुण्डली में या वर्ष-कुण्डली में या ग्रह गोचर आदि में कोई ग्रह खराब स्थिति में  हो तो अरिष्ट-निवारण के लिये ग्रहों के निमित्त दान-पुण्य करने की विधि हैं । ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों के आनुकूल्य प्राप्ति हेतु विभिन्न प्रकार के दान बताये गये हैं । ग्रहों के भिन्न-भिन्न प्रकार के दान कहे गये…

और पढ़ें

hi_INHI