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सिद्धान्त

काल की लघुत्तम इकाई से प्रलयान्त काल तक की कालगणना की हो, कालमानों के सौर-सावन-नाक्षत्र चान्द्र आदि भेदों का निरुपण किया हो, ग्रहों की मार्गी-वक्री, शीघ्र-मन्द, नीच-उच्च, दक्षिण-उत्तर आदि गतियों का वर्णन  हो, अंक गणित-बीजगणित- दोनों गणितविद्याओं का विवेचन किया गया हो, उत्तर सहित प्रश्नों का विवेचन किया गया हो, पृथ्वी की स्थिति, स्वरूप एवं…

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ज्योतिष

महर्षि पाणिनि ने ज्योतिष को वेदपुरुष का नेत्र कहा है - 'ज्योतिषामयनं चक्षुः'। जैसे मनुष्य बिना नेत्र के किसी भी वस्तु का दर्शन करने में असमर्थ होता है, ठीक वैसे ही वेदशास्त्र को जानने के लिये ज्योतिष का महत्त्व सिद्ध है । भूतल, अन्तरिक्ष एवं भूगर्भ के प्रत्येक पदार्थ का त्रैकालिक यथार्थ ज्ञान जिस शास्त्र…

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रत्न-विज्ञान

 ज्योतिष में रत्नों की  विशेष महिमा है। रत्नों की  चमत्कारी शक्ति का सम्बन्ध आकाशीय ग्रहों से है।प्रत्येक ग्रह में  प्राकृतिक गुण होते  हैं।  ग्रह विशेष और  रत्नविशेष की प्रकृति में  गुणसाम्य है।  यथा –  सूर्य - माणिक्य,  चन्द्र - मोती, मंगल - मूँगा,  बुध - पन्ना, गुरु - पुखराज,  शुक्र - हीरा,  शनि - नीलम,…

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स्वरविज्ञान और ज्योतिषशास्त्र

जन्म के साथ ही मानव को स्वरोदय-ज्ञान मिला है। यह  विशुद्ध वैज्ञानिक आध्यात्मिक ज्ञान-दर्शन है, प्राण ऊर्जा है, विवेक शक्ति है। स्वर-साधना  अनुभव से हमारे ऋषि-मुनियों ने भूत, भविष्य और वर्तमान को जाना है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अंक ज्योतिष, स्वप्न ज्योतिष, स्वरोदय- ज्योतिष, शकुन-ज्योतिष, सामुद्रिक हस्तज्योतिष, शरीरसर्वांगलक्षणज्योतिष हैं। इन सब में तत्काल प्रभाव और…

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ज्योतिष और आयुर्वेद

जन्मपत्री पूर्वार्जित कर्मों को जानने का माध्यम है । पूर्वकृत कर्म से मनुष्य को कौन-सी व्याधि होगी? इसका ज्ञान ज्योतिष विद्या से ही प्राप्त होता है । भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ चार वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है । इसके अन्तर्गत ज्योतिष एवं चिकित्सा विज्ञान का वर्णन है । दोनों एक दूसरे के पूरक…

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सप्त ऋषि

विभिन्न मन्वन्तरों में धर्म और मर्यादा की रक्षा के  लिये तथा अपने सदाचरण से  उत्तम शिक्षा प्रदान करने के लिये सात ऋषि उत्पन्न (अवतरित) होते हैं । ये ही सप्तर्षि कहलाते हैं । इन्हीं की तपस्या, शक्ति, ज्ञान और जीवन-दर्शन के प्रभाव से सारा संसार सुख और शान्ति प्राप्त करता है । ये ऋषिगण लोकहितमें…

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