चान्द्रमासों के नाम नक्षत्रों के नाम पर रखे गये है। पूर्णिमा को जो नक्षत्र होता है,उस नक्षत्र के नाम पर मास का नाम रखा गया है चन्द्रमा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को अश्विनी नक्षत्र पर प्रकट हुआ था पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र पर आया इस कारण प्रथम मास का नाम चैत्र पड़ा। अगले मास की पूर्णिम…
कल्प पाँच प्रकार के माने गये हैं-
नक्षत्रकल्प वेदकल्प संहिताकल्प आङ्गिरसकल्प शान्तिकल्प
नक्षत्रकल्प में नक्षत्रों के स्वामी का विस्तारपूर्वक यथार्थ वर्णन किया गया है । वेदकल्प में ऋगादि-विधानका विस्तारसे वर्णन है — जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि के लिये कहा गया है । संहिताकल्प में तत्त्वदर्शी मुनियों ने मन्त्रों के ऋषि,…
तिथिवारं च नक्षत्रं योगः करणमेव च ।
यत्रैतत्पञ्चकं स्पष्टं पञ्चाङ्गं तन्निगद्यते ॥
जानाति काले पञ्चाङ्गं तस्य पापं न विद्यते ।
तिथेस्तु श्रियमाप्नोति वारादायुष्यवर्धनम् ॥
नक्षत्राद्धरते पापं योगाद्रोगनिवारणम् ।
करणात्कार्यसिद्धिः स्यात्पञ्चाङ्गफलमुच्यते ॥
पञ्चाङ्गस्य फलं श्रुत्वा गङ्गास्नानफलं लभेत् ।
तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण- इन पाँचों का जिसमें स्पष्ट मानादि रहता है, उसे पंचांग कहते हैं । जो…
प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों के पास आज की तरह न तो विकसित वेधशालाएँ थीं और न सूक्ष्म परिणाम देने वाले आधुनिकतम वैज्ञानिक उपकरण, फिर भी वे अपने अनुभव तथा अतीन्द्रिय ज्ञान के सहारे आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों आदि का अध्ययन करके वर्षां पूर्व मौसम का पूर्वानुमान कर लेते थे । यद्यपि वैदिक संहिताओं, पुराणों, स्मृतियों में इस…
मनुष्य के आज भी समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा ही चलते हैं । व्यवहार के लिये अत्यन्त उपयोगी दिन, सप्ताह, पक्ष, मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सव, तिथि आदि का परिज्ञान इसी शास्त्र से होता है । शिक्षित या सभ्य समाज की तो बात ही क्या, भारतीय अनपढ़ कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिचित…
गणित, होरा एवं संहिता - इन तीन स्कन्धों से युक्त ज्योतिष शास्त्र वेद का नेत्र प्रधान अंग है । इस विद्या से भूत, भविष्य, वर्तमान, सभी वस्तुओं तथा त्रिलोक का प्रत्यक्षवत् ज्ञान हो जाता है । ज्योतिष ज्ञान विहीन लोक अन्य ज्ञानों से पूर्ण होने पर भी दृष्टि शून्य अन्धेके तुल्य होता है । इस…
मानव जीवन के सुख-दुःख सभी शुभाशुभ विषयों का विवेचन करने वाला विभाग होरा शास्त्र है । इसमें इष्टकाल के द्वारा विविध कुण्डलियों का निर्माण कर जातक के पूर्वजन्म, वर्तमान जन्म तथा भविष्य के फलों के कथन की विधियाँ निरूपित हैं । इस स्कन्ध में ग्रह और राशियों का स्वरूप वर्णन, ग्रहों की दृष्टि, उच्च-नीच, मित्रामित्र,…
संहिता में सिद्धान्त और फलित दोनों के विषयों का मिश्रण है । गणित एवं फलित के मिश्रित रूप को अथवा ज्योतिष शास्त्र के सभी पक्षों पर जिसमें विचार किया जाता है, उसे संहिता कहते हैं । इसमें नक्षत्र मण्डल में ग्रहों के गमन और उनके परस्पर युद्धादि, केतु-धूमकेतु, उल्कापात, उत्पात तथा शकुनादिकों के द्वारा राष्ट्र…