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काल की लघुत्तम इकाई से प्रलयान्त काल तक की कालगणना की हो, कालमानों के सौर-सावन-नाक्षत्र चान्द्र आदि भेदों का निरुपण किया हो, ग्रहों की मार्गी-वक्री, शीघ्र-मन्द, नीच-उच्च, दक्षिण-उत्तर आदि गतियों का वर्णन  हो, अंक गणित-बीजगणित- दोनों गणितविद्याओं का विवेचन किया गया हो, उत्तर सहित प्रश्नों का विवेचन किया गया हो, पृथ्वी की स्थिति, स्वरूप एवं गति का निरुपण किया हो, ग्रहों के कक्षाक्रम एवं वेधोपयोगी यन्त्रों का वर्णन किया गया हो, अधिकमास, क्षयमास, प्रभवादि संवत्सर, नक्षत्रों का भ्रमण, चरखण्ड, राश्युदय, छाया, नाड़ी, करण आदि का वर्णन किया गया हो,   उसे सिद्धान्त ज्योतिष कहते है । सिद्धान्त के क्षेत्र में पितामह, वसिष्ठ, पौलिश तथा सूर्य-इनके नाम से गणित की पाँच सिद्धान्त पद्धतिया प्रमुख है ।

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