ज्योतिषशास्त्र जीवन-विज्ञान का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट अंग है, जो मानव जीवन की सूक्ष्म से सूक्ष्म बात या घटना पर प्रकाश डालने मे सक्षम है। व्यक्ति की जन्मपत्रिका एक दर्पण के समान है, जिसमें स्थित ग्रह पूर्वजन्म के किये हुए कर्मों के आधार पर भविष्य का संकेत देते हैं।
जन्म के समय जिन-जिन राशि वाले ग्रहों की प्रधानता होती है, जातक के गुण और स्वभाव भी उनके अनुसार ही बन जाते है,
शास्त्रों में कहा गया है कि -
एते ग्रहा बलिष्ठा: प्रसूतिकाले नृणां स्वमूर्तिसमम् ।
कुर्युर्देहं नियतं बहवश्च समागता मिश्रम् ॥
1. जन्मकुण्डली के अध्ययन के समय लग्न का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान होता है, इसलिए लग्न, लग्नेश कि स्थिति एवं प्रकृति तथा लग्न राशि का भली भांति अध्ययन करना आवश्यक है। जन्म लग्न के साथ-साथ चन्द्र लग्न का विचार करना भी उपयुक्त है।
2. ग्रहों की स्थिति, युति, दृष्टि, गुण-दोष, नैसर्गिकबल, पारस्परिक सम्बन्ध आदि का विचार तथा कारक, अकारक और तटस्थ ग्रहों के प्रभाव का अध्ययन ।
3. प्रत्येक भाव, भावाधिपति तथा कारक ग्रह का विवेचन । केन्द्र एवं त्रिकोण सम्बन्धों का विचार ।
4. दशा तथा अन्तर्दशा का प्रभाव ।
5. विभिन्न योगों का अध्ययन ।
6. शिक्षा एवं व्यवसाय की दृष्टि से सम्बन्धित भावों, ग्रहों और राशियों का विशेष अध्ययन |