सप्ताह
सूर्यादि सात वारों के क्रमानुसार एक चक्र पूर्ण होने के काल का नाम सप्ताह है।
पक्ष
पक्ष दो हैं, कृष्णपक्ष तथा शुक्लपक्ष। ये 15-15 तिथियों के होते हैं। कृष्णपक्ष पितरोंका दिन तथा शुक्लपक्ष पितरों की एक रात्रि होती है।चन्द्रकलाओं की वृद्धिसे शुक्लपक्ष तथा हास से कृष्णपक्ष का निर्धारण हुआ।
अयन
अयन 2 होते हैं। उत्तरायण तथा दक्षिणायन ये छ:-छः मास के होते हैं। एक वर्षमें 2 अयन होते हैं। सूर्य की मकर-संक्रान्ति से मिथुन-संक्रान्ति तक उत्तरायण तथा सूर्य की कर्क-संक्रान्ति से धनु-संक्रान्ति तक दक्षिणाय होता है। उत्तरायण देवताओं का एक दिन तथा दक्षिणाय देवताओं की एक रात्रि होती है।
मास-
1.सौरमास
इस मास का सम्बन्ध सूर्य से है। पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण सूर्य विभिन्न राशियों को भोगता हुआ प्रतीत होता है। सूर्य एक राशि में जितनी अवधि तक रहता है उस अवधि को एक सौरमास कहा जाता है। राशियों की लम्बाई में अन्तर होने के कारण सौर मास कम-से-कम 29 दिन तथा अधिक-से अधिक 32 दिन का होता है। बारह सौरमास अर्थात् एक वर्ष का मान 365 दिन 6 घण्टे 9 मिनट 10.8 सेकेण्ड होता है
2.चान्द्रमास
शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक एक चान्द्रमास माना जाता है। अमावस्या को सूर्य चन्द्र एक राशि के समान अंशपर होते हैं, अत: सूर्य चन्द्रमा का अन्तर ही चान्द्रमास कहलाता है। चान्द्रमास 29 दिन 31 घटी 50 पल 7 विपल 30 प्रतिविपल का होता है।
3.नाक्षत्रमास
चन्द्रमा द्वारा 27 नक्षत्रों को पार करने के काल को नाक्षत्रमास कहते हैं। नाक्षत्रमास 27 दिन 19 घटी 17 पल 58 विपल का होता है।
4.सावनमास
30 दिनका माना जाता है। लोकव्यवहार एवं पंचांगों में चान्द्रमास को स्वीकारा गया है। यह मास वास्तव में अमावस्या से अगले दिन शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर अमावस्या को समाप्त होता है।
5.अधिकमास
जिस चान्द्रमास में सूर्य की संक्रान्ति नहीं होती है, उसे अधिकमास कहते हैं। जिस राशिपर सूर्य जाता है, वह उस राशि की संक्रान्ति कहलाती है। अर्थात् , जब दो पक्षों में लगातार सूर्य-संक्रान्ति नहीं होती, तब वह अधिकमास की संज्ञा में आता है। इसे मलमास और पुरुषोत्तममास भी कहते है। हर तीसरे वर्ष चान्द्र एवं सौर वर्षों के समयान्तर का सामंजस्य करने के लिये अधिमास का विधान है।
6.क्षयमास
जिस चान्द्रमास के दोनों पक्ष में सूर्य संक्रान्ति होती है, उसे क्षयमास कहते हैं। क्षयमास केवल कार्तिक, मार्गशीर्ष और पौष-इन तीन महीनों से किसी एक महीने में पड़ता है, वर्ष के अन्य मासों में नहीं जिस वर्ष क्षयमास होता है, उस एक वर्ष के भीतर दो अधिकमास होते हैं।
सौरमास और संक्रान्ति-
सूर्य जब एक राशि पार कर आगामी राशि पर गति करता है, उसे उस राशि की सूर्य-संक्रान्ति कहते हैं। सूर्य की प्रत्येक महीने में एक संक्रान्ति (एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) होती है। यह संक्रान्ति प्रायः हर अँगरेजी महीने की 15 तारीख के आसपास होती है।
गोल-
गोल 2 होते हैं। उत्तर गोल (उत्तरी ध्रुव) तथा दक्षिण गोल (दक्षिणी ध्रुव) । छ: राशियाँ – मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या उत्तर गोल में है तथा शेष छ: राशियाँ —तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन दक्षिण गोल में हैं। पृथ्वी के मध्य में पूर्व से पश्चिम (या पश्चिमसे पूर्व) एक कल्पित रेखा है। जिसे भूमध्य रेखा कहते हैं । इस रेखा के ऊपर, उत्तर में उत्तर गोल तथा नीचे दक्षिण में दक्षिण गोल है। इनके ध्रुव-स्थान को उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव कहते हैं।
ऋतुएँ-
एक वर्षमें छः ऋतुएँ होती हैं। प्रत्येक ऋतु दो-दो मासकी होती है।
1.वसन्तऋतु – फाल्गुन, चैत्र (फरवरी-मार्च)
2 .ग्रीष्मऋतु – वैशाख, ज्येष्ठ -(अप्रैल-मई)
3 .वर्षाऋतु – आषाढ़ – श्रावण (जून-जुलाई)
4. शरदऋतु-भाद्रपद, आश्विन (अगस्त-सितम्बर)
5. शिशिरऋतु – कार्तिक,मार्गशीर्ष (अक्टूबर-नवम्बर)
6. हेमन्तऋतु – पौष, माघ (दिसम्बर-जनवरी)