तिथि के आधे भाग को ‘करण’ कहते हैं। ये दो होते हैं पूर्वार्द्ध तथा उत्तरार्द्ध । एक चन्द्रमास में 30 तिथियाँ और 60 करण होते हैं। चन्द्र और सूर्य के भोगांशों के बीच 6 अंश का अन्तर एक करण है। करण 11 हैं। उनमें पहले 7 करण ‘चर’ करण तथा अन्तिम 4 करण ‘स्थिर’ करण हैं। इनके नाम हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न। एक पक्षमें स्थिर करण एक-एक बार ही आते हैं जबकि चर करण एक पक्ष में चार-चार बार आते हैं। करणों का क्रम स्थिर है एक करण के बाददूसरा करण ही आता है। तिथि संख्या 15 पूर्णमासी तथा 30 अमावस्या की है।
होरा काल
होरा का मान 1 घण्टे के बराबर है। एक दिन-रात में 24 होरा होते हैं। होरा का निर्माण ग्रहों के आधार पर है। मुख्य ग्रह 7 हैं। आकाश में ग्रहों की स्थिति ऊपर से नीचे शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र तथा चन्द्रमा है।
सूर्योदय के समय जिस ग्रह का प्रथम होरा आरम्भ होता है, वह उस दिन का वार होता है।सातों ग्रहोंके दिन-रात के 24 होराओं में एक ग्रह की तीन आवृति के बाद 3 होरा शेष बचते हैं। इस प्रकार चौथे ग्रह के होरा में दूसरे दिन का प्रथम होरा प्रारम्भ होता है।