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तिथि-देव-पूजा-महत्व

भविष्यपुराण के अनुसार  मूलमन्त्र, नाम-संकीर्तन  मन्त्रों से कमल के मध्य में स्थित तिथियों के स्वामी देवताओं की विविध उपचारों से भक्तिपूर्वक यथाविधि पूजा करनी चाहिये तथा जप-होमादि कार्य करने चाहिये। इनके प्रभाव से मानव लोक में और परलोक में सदा सुखी रहता है। उन-उन देवों के लोकों को प्राप्त करता है और मनुष्य देवता के…

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करण

तिथि के आधे भाग को 'करण' कहते हैं। ये दो होते हैं  पूर्वार्द्ध तथा  उत्तरार्द्ध । एक चन्द्रमास में 30 तिथियाँ और 60 करण होते हैं। चन्द्र और सूर्य के भोगांशों के बीच 6 अंश का अन्तर एक करण है। करण 11 हैं। उनमें पहले 7 करण  'चर' करण तथा अन्तिम 4 करण 'स्थिर' करण…

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तिथि

सूर्य और चन्द्र के बीच की 12 डिग्री की दूरी को एक तिथि कहा जाता है। अमावस्या को सूर्य और चन्द्र  एक राशि के समान अंश पर होते हैं । 0° से 12° तक दूरी शुक्लपक्ष प्रतिपदा, 12° से 24° तक शुक्लपक्ष द्वितीया, 24° से 36° तक दूरी होने पर शुक्लपक्ष तृतीया होती है। इसी…

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व्रत

शास्त्रोक्त नियम को ही 'व्रत' कहते हैं, वही 'तप' माना गया है । 'दम' (इन्द्रियसंयम) और  'शम' (मनोनिग्रह)  विशेष नियम व्रत के ही अङ्ग हैं । व्रत करने वाले पुरुष को  शारीरिक संताप सहन करना पड़ता है, इसलिये  व्रत को 'तप' नाम दिया गया है । इसी प्रकार व्रत में इन्द्रिय समुदाय का संयम करना…

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भद्रा

भद्रा भगवान् सूर्य की पुत्री हैं । ये सूर्य पत्नी छाया से उत्पन्न हैं और शनैश्चर की बहन हैं । भद्रा का वर्ण काला, रूप भयंकर, केश लम्बे और दाँत बड़े विकराल हैं । जन्म होते ही वह संसार का ग्रास करने के लिये दौड़ी, यज्ञों में विघ्न-बाधा पहुँचाने लगी, उत्सवों तथा मंगल-यात्रा आदि में…

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योग

योग का अर्थ होता है जोड़ । योग की उत्पत्ति नक्षत्र से होती है। भूकेन्द्रीय दृष्टि से सूर्य + चन्द्रमा की गति का योग एक नक्षत्र भोगकाल 13 अंश 20 कला होता है तब एक योग की उत्पत्ति होती है। अर्थात सूर्य की दैनिक गति / अंश और चन्द्रमा की 13 अंश 20 कला है…

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