ज्योतिष विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान का सम्बन्ध प्राचीन काल से रहा है । पूर्वकाल में एक सुयोग्य चिकित्सक के लिये ज्योतिष विषय का ज्ञाता होना अनिवार्य था । इससे रोग निदान में सरलता होती थी ज्योतिष शास्त्र के द्वारा रोग की प्रकृति, रोग का प्रभाव क्षेत्र, रोग का निदान और साथ ही रोग के प्रकट…
ज्योतिष विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान का सम्बन्ध प्राचीन काल से रहा है । पूर्वकाल में एक सुयोग्य चिकित्सक के लिये ज्योतिष विषय का ज्ञाता होना अनिवार्य था । इससे रोग निदान में सरलता होती थी ज्योतिष शास्त्र के द्वारा रोग की प्रकृति, रोग का प्रभाव क्षेत्र, रोग का निदान और साथ ही रोग के प्रकट…
सामुद्रिक शास्त्र भारत की बहुत प्राचीन विद्या है। सामुद्रिक शास्त्र का अध्ययन क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है, इसमें शरीर लक्षणों के साथ ही हस्त विज्ञान का भी अध्ययन होता है । हस्तविज्ञान का अपना कुछ वैशिष्ट्य है प्रातः काल में हथेलियों का दर्शन करना हमारे यहाँ पुण्यदायक, मंगलप्रद तथा तीर्थों के सेवन-जैसा माना गया है ।…
प्रायः समस्त भारतीय विज्ञान का लक्ष्य एक मात्र अपनी आत्मा का विकास कर उसे परमात्मा में मिला देना है । विज्ञान का ध्येय विश्व की गूढ़ पहेली को सुलझाना है । ज्योतिष भी विज्ञान होने के कारण इस अखिल ब्रह्माण्ड के रहस्य को व्यक्त करने का प्रयत्न करता है । ज्योतिष शास्त्र का अन्य नाम…
विवाह के पूर्व वर कन्या की जम्मपत्रिया मिलाने को मेलापक कहते है। ज्योतिष में लग्न को शरीर और चन्द्रमा को मन माना गया है। प्रेम मन से होता है, शरीर से नहीं । इसीलिए जन्मराशि से मेलापक का ज्ञान करना चाहिए । भावी दम्पति के स्वभाव, गुण, प्रेम और आचार-व्यवहार के सम्बन्ध में ज्ञात करना…
'अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्'
वैदिक दर्शन की पुनर्जन्म की अवधारणा के अनुसार मनुष्य निरन्तर शुभ-अशुभ कर्मों में निरत रहता है। उसे कर्मों का फल अवश्य भोगना है, परंतु एक साथ ही एक ही जन्म में समस्त कर्मों का फल मिलना सम्भव नहीं है, अतः उसे अनेक जन्म धारण करने पड़ते हैं, जिसमें वह…
कालगणनाक्रम .1
1 परमाणु = काल की सूक्ष्मतम अवस्था
2 परमाणु = 1 अणु
3 अणु = 1 त्रसरेणु
3 त्रसरेणु = 1 त्रुटि
10 त्रुटि = 11 प्राण
10 प्राण = 1 वेध
3 वेध = 1 लव
3 लव = 1 निमेष
1 निमेष = 1 पलक झपकने का समय
2 निमेष =1…
'ज्योतिषां सूर्यादिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्' ज्योतिष-शास्त्र की इस व्युत्पत्ति के अनुसार सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिषशास्त्र कहते हैं। काल को आधार बनाकर फल विवेचना के लिये जन्म कालीन ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुण्डली का निर्माण किया जाता है। जन्मकुण्डली के द्वादश भावों में स्थित ग्रहों के परस्पर सम्बन्धादि का…