जन्म चन्द्रमा, जन्मन क्षत्र और जन्म के महीने को छोड़ अन्य में बालक का कान छिदवाना चाहिये।
रविवार, शनिवार, मङ्गलवार को छोड़कर अन्य वारों में बालक का कान छिदवाना चाहिये।
श्रीहरि के जाग्रत्काल में सूर्य शुद्ध होने पर बालक का कान छिदवाना चाहिये।
पुष्य, अश्विनी, इस्त, श्रवण, घनिष्ठा, चित्रा, अनुराधा, मृगशिर, रेवती, स्वाति, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ,…
नक्षत्र - पुष्य, अश्विनी, हस्त,स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, आर्द्रा, मूल,आश्लेषा, कृत्तिका, भरणी, मघा, विशाखा, पूर्वाफल्गुनी, पूर्वाषाढा, पूर्वाभाद्रपदा, चित्रा, रेवती और मृगशिरा नक्षत्र में बालक का विद्यारम्भ संस्कार करना चाहिये।
वार - बृहस्पतिवार शुक्रवार और रविवार को बालक का विद्यारम्भ संस्कार करना चाहिये।
केन्द्र और त्रिकोणस्थान में शुभ ग्रह होने पर बालक का विद्यारम्भ संस्कार करना…
बुध जन्म राशि के प्रथम स्थान में स्थित होने पर मनुष्य को वन्धन होता है।
बुध जन्म राशि के दूसरे स्थान में स्थित होने पर मनुष्य को घनलाभ होता है।
बुध जन्म राशि के तीसरे स्थान में स्थित होने पर मनुष्य को मृत्यु की शङ्का होती है।
बुध जन्म राशि के चौथे स्थान में स्थित…
मंगल जन्म राशि के प्रथम स्थान में स्थित होने पर मनुष्य को शत्रु का भय होता है।
मंगल जन्म राशि के दूसरे स्थान में स्थित होने पर मनुष्य को घन के नाश होता है।
मंगल जन्म राशि के तीसरे स्थान में स्थित होने पर मनुष्य को अर्थलाभ होता है।
मंगल जन्म राशि के चौथे स्थान…
चन्द्रमा जन्म राशि के प्रथम स्थान में स्थित होने पर मनुष्य को अर्थलाभ होता है।
चन्द्रमा जन्म राशि के दूसरे स्थान में स्थित होने पर मनुष्य को वित्तनाश होता है।
चन्द्रमा जन्म राशि के तीसरे स्थान में स्थित होने पर मनुष्य को द्रव्यलाभ होता है।
चन्द्रमा जन्म राशि के चौथे स्थान में स्थित होने पर…
सूर्य् जन्म राशि के प्रथम स्थान में स्थित होने पर मनुष्य का स्थान परिवर्तन होता है।
सूर्य् जन्म राशि से दूसरे स्थान में स्थित होने पर भय होता है।
सूर्य् जन्म राशि के तीसरे स्थान में स्थित होने पर श्रीलाभ होता है।
सूर्य् जन्म राशि के चौथे स्थान में स्थित होने पर मनुष्य की मानहानि…
सूर्य् एक राशि में एक महीने तक रहता है।
चन्द्रमा एक राशि में सवा दो दिन तक रहता है।
मङ्गल एक राशि में पैंतालिस दिन तक रहता है।
बुध एक राशि में अठारह दिन तक रहता है।
बृहस्पति एक राशि में एकवर्ष तक रहता है।
शुक्र एक राशि में भठ्ठाईस दिन तक रहता है।
शनैश्चर…
कुर्य्यात्पुंसवनं सुयोगकरणे नन्दे सभद्रे तिथौ ।
भाद्राषाढ़नृभेश्वरेषु नृदिने वेधं विनेन्दो शुभे ॥
अक्षीणश्च त्रिकोणकण्टकगते सौम्येऽशुभे वृद्धिषु ।
स्त्रीशुद्धचा षटयुग्मसूर्य्यगुरुभेषूद्यत्सु मासत्रये ॥
मास -
गर्भाधान से तीसरे मास में पुंसवन संस्कार करना चाहिये।
योग -
शुभयोग में पुंसवन संस्कार करना चाहिये।
करण -
शुभकरण र्मे पुंसवन संस्कार करना चाहिये।
तिथि -
प्रतिपदा, एकादशी, षष्ठी, द्वितीया, द्वादशी और…