विष्णु पुराण के अनुसार एक समय देवताओं और दानवों में लंबे समय तक युद्ध चलता रहा। भगवान विष्णु ने दोनों पक्षों से समुद्र मंथन करने के लिए के लिए युद्ध रोकने का आग्रह किया। असुरराज बलि ने देवराज इन्द्र से समझौता कर लिया और समुद्र मंथन के लिये तैयार हो गये। समुद्र मंथन से जो…
जिस भूमि पर मनुष्यादि प्राणी निवास करते हैं, उसे वास्तु कहा जाता है। इस के गृह, देव प्रासाद, ग्राम, नगर, आदि अनेक भेद हैं। वास्तु के आविर्भाव के विषय में मत्स्यपुराण में आया है कि अन्धकासुर के वध के समय भगवान् शंकर के ललाट से जो स्वेदबिन्दु गिरे उनसे एक भयंकर आकृति वाला पुरुष प्रकट…
सत्ययुग-
सत्ययुग = 4000 देवतावर्ष।
सत्ययुग की पूर्व सन्ध्या- 400 देवतावर्ष।
सत्ययुग की अन्तिम सन्ध्या- 400 देवतावर्ष।
सत्ययुग- 1440000+144000+144000 =1728000 (सत्रह लाख अट्ठाईस हजार) मानववर्ष।
त्रेतायुग-
त्रेतायुग 3000 देवतावर्ष।
त्रेतायुग की पूर्व सन्ध्या- 300 देवतावर्ष।
त्रेतायुग की अन्तिम सन्ध्या 300 देवतावर्ष।
त्रेतायुग 1080000+108000+108000 = 1296000 (बारह लाख छियानबे हजार) मानववर्ष।
द्वापर-
द्वापर युग 2000 देवतावर्ष।…
सप्ताह
सूर्यादि सात वारों के क्रमानुसार एक चक्र पूर्ण होने के काल का नाम सप्ताह है।
पक्ष
पक्ष दो हैं, कृष्णपक्ष तथा शुक्लपक्ष। ये 15-15 तिथियों के होते हैं। कृष्णपक्ष पितरों का दिन तथा शुक्लपक्ष पितरों की एक रात्रि होती है।चन्द्रकलाओं की वृद्धि से शुक्ल पक्ष तथा हास से कृष्णपक्ष का निर्धारण हुआ।
अयन
अयन…
भविष्यपुराण के अनुसार मूलमन्त्र, नाम-संकीर्तन मन्त्रों से कमल के मध्य में स्थित तिथियों के स्वामी देवताओं की विविध उपचारों से भक्तिपूर्वक यथाविधि पूजा करनी चाहिये तथा जप-होमादि कार्य करने चाहिये। इनके प्रभाव से मानव लोक में और परलोक में सदा सुखी रहता है। उन-उन देवों के लोकों को प्राप्त करता है और मनुष्य देवता के…
अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल एवं रेवती नामक छह नक्षत्र गंड मूल नक्षत्र कहलाते हैं। यदि जन्म के समय चंद्रमा गंड मूल नक्षत्र में हो तो27 दिनों के पश्चात् जब वहीं नक्षत्र आता है, तब उसकी शांति कराई जाती है।
गंडांत योग
जहाँ राशि और नक्षत्र दोनों की समाप्ति एक साथ होती है, उसे गंड…
धनिष्ठाका उत्तरार्ध शतभिषा पूर्वाभाद्रपद उत्तरा भाद्रपद रेवती
इन पाँच नक्षत्रों को पंचक कहते हैं। पंचक में निषिद्ध कार्य को निरूपित करते हुए बताया गया है।
धनिष्ठापञ्चके त्याज्यस्तृणकाष्ठादिसङ्ग्रहः ।
त्याज्या दक्षिणदिग्यात्रा गृहाणां छादनं तथा ॥
पंचक में
तृण-काष्ठादि का संचय दक्षिण दिशा की यात्रा गृह छत प्रेतदाह शय्या बनाना
ये कार्य निषिद्ध हैं।
2022 में पंचक
जनवरी…