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राशि –दिशा-प्रकृति

मेष-  इस राशि का आधिपत्य पूर्व दिशा में होता है। यह राशि पुरुषजाति, चरसंज्ञक, अग्नितत्त्व,  पित्तप्रकृति, भूमि पर निवास वाली, क्षत्रियवर्ण, अल्पसन्तति, रात्रिबली एवं क्रूर स्वभाव की होती है। इसे साहस, वीरता एवं अहंकार का प्रतीक माना जाता है। मेष लग्न में जन्म लेने वाले जातक प्रायः गम्भीर प्रकृति के एवं अल्पभाषी होते हैं। वृष-…

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ग्रह-बल

स्थानबल, दिग्बल, कालबल, नैसगिकबल, चेष्टाबल और दृग्बल ये छह प्रकार के बल हैं । 1. स्थानबल- जो ग्रह उच्च, स्वगृही, मित्रगृही, मूल-त्रिकोणस्थ, स्व-नवांशस्थ अथवा द्रेष्काणस्थ होता है, वह स्थानबली कहलाता है । चन्द्रमा शुक्र समराशि में और अन्य ग्रह विषम राशि में बली होते हैं । 2. दिग्बल- बुध और गुरु लग्न में रहने से,…

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ग्रह-फल-विचार

सूर्य से- पिता, आत्मा, प्रताप, आरोग्यता, आसक्ति और लक्ष्मी का विचार किया जाता है। चन्द्रमा से- मन, बुद्धि, राजा की प्रसन्नता, माता और धन का विचार किया जाता है। मंगल से- पराक्रम, रोग, गुण, भाई, भूमि, शत्रु और जाति का विचार किया जाता है।  बुध से- विद्या, बन्धु, विवेक, मामा, मित्र और वचन का विचार…

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ग्रह-कारक

सूर्य- पितृ, आत्मा, स्वभाव, आरोग्यता, राज्य, देवालय का कारक होता है। चन्द्र- चन्द्र  मन का कारक होता है। मंगल- शक्ति, बल, भूसम्पत्ति, कृषि, धैर्य, छोटा भाई, पराक्रम, सेनापति, राजशत्रु का कारक होता है। बुध- विद्या, बुद्धि, वक्तृत्व-शक्ति, स्वतन्त्र धन्या, वाणी, लेखन-कला, वेदान्त विषय में रुचि, ज्योतिष विद्या का ज्ञान, गणित-शास्त्र, सम्पादक,…

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होरास्कन्ध

लग्न- लग्न- बालक का जब जन्म हुआ, उस समय पूर्व दिशा में किस राशि का उदयमान था, जिस राशि का समय-काल था, वही जन्म-लग्न है। होरास्कन्ध- मानव जीवन के सुख-दुःख,  सभी शुभ-अशुभ विषयों का विवेचन करने वाला शास्त्र ही होराशास्त्र है। होरा शब्द की उत्पत्ति अहोरात्र शब्द से हुई है। अहोरात्र शब्द के प्रथम एवं…

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 पुनर्जन्म और ज्योतिषशास्त्र

'अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्' वैदिक दर्शन की पुनर्जन्म की अवधारणा के अनुसार मनुष्य निरन्तर शुभ-अशुभ कर्मों में निरत रहता है। उसे कर्मों का फल अवश्य भोगना है, परंतु एक साथ ही एक ही जन्म में समस्त कर्मों का फल मिलना सम्भव नहीं है, अतः उसे अनेक जन्म धारण करने पड़ते हैं, जिसमें वह…

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ज्योतिषीय कालपरिणाम

कालगणनाक्रम .1 1 परमाणु = काल की सूक्ष्मतम अवस्था 2 परमाणु = 1 अणु 3 अणु = 1 त्रसरेणु 3 त्रसरेणु = 1 त्रुटि 10 त्रुटि = 11 प्राण 10 प्राण = 1 वेध 3 वेध = 1 लव 3 लव = 1 निमेष 1 निमेष = 1 पलक झपकने का समय 2 निमेष =1…

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ज्योतिष-शास्त्र का  लक्ष्य

'ज्योतिषां सूर्यादिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्' ज्योतिष-शास्त्र  की इस व्युत्पत्ति के अनुसार सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिषशास्त्र कहते हैं। काल को आधार बनाकर फल विवेचना के लिये जन्म कालीन ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुण्डली का निर्माण किया जाता है। जन्मकुण्डली के द्वादश भावों में स्थित ग्रहों के परस्पर सम्बन्धादि का…

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